बाभ्रव्य (पांचाल) n. एक आचार्य, जो दक्षिण पांचाल देश के ब्रह्मदत्त राजा के दो मंत्रियों में से एक था
[ह.वं.१.२०.१३] । इसका संपूर्ण नाम ‘सुबालक (गालव) बाभ्रव्य पांचाल’ था । इसे ‘बहुवृच’ एवं ‘आचार्य’ ये उपाधियॉं प्राप्त थी
[ह.वं.१.२३.२१] । यह सर्वशास्त्रविद् एवं योगशास्त्र का परम अभ्यासक था
[मत्स्य.२०.२४,२१.३०] । इसने ऋग्वेद की शिक्षा तैयार कर उसका प्रचार किया । इसने वेदमंत्रों का क्रम निश्चित किया, एवं उसका प्रचार भी किया
[पद्म.पा.१०] ;
[ह.वं.१.२४.३२] ;
[म.शां.३३०.३७-३८] ; पांचाल ३ देखिये । ऋक् संहित के क्रमपाठ के रचना का श्रेय वैदिक ग्रंथों में भी बाभ्रव्य पांचाल को दिया गया है । पाणिनि ने भी बाभ्रव्य एवं इसके द्वारा रचित क्रम का निर्देश किया है
[पा. सृ.४.१.१०६,२.६१] । ब्रह्मदत्त राजा के कंडरिक (पुंडरिक) एवं बाभ्रव्य नामक दो मंत्रियों ने समस्त वैदिक ऋचाओं को एकत्र कर उनको ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद इन संहिताओं में विभाजित किया । उन संहिताओं का अंतीम एकत्रीकरण एवं संस्करण ने किया ।
बाभ्रव्य (पांचाल) II. n. एक कामशास्त्रकार एवं वात्स्यायन के कामसूत्र का पूर्वाचार्य । वात्स्यायन के अनुसार, कामशास्त्र की सर्वप्रथम रचना श्वेतकेतु ने की, एवंकेतुप्रणीत कामशास्त्र के संक्षेपीकरण का कार्य बाभ्राव्य पांचाल ने किया । मत्स्य में ‘क्रमपाठ रचयिता’ बाभ्रव्य एवं ‘कामसूत्रकार’ बाभ्रव्य को अनवधानी से एक माना गया है । किन्तु कामसूत्रकार बाभ्रव्य का पूर्वाचार्य श्वेतकेतु क्रमपाठरचयिता बाभ्रव्य से काफी उत्तरकालीन था । इससे प्रतीत होता है कि, ये दो बाभ्रव्य अलग व्यक्ति थे ।
बाभ्रव्य II. n. विश्वामित्रकुल का एक गोत्रकार ।
बाभ्रव्य III. n. एक गोत्र का नाम । गालवमुनि इसी गोत्र में उत्पन्न हुए थे ।