सीरध्वज (जनक) n. (सू. निमि.) विदेह देश का सुविख्यात राजा, जो सीता का पिता था । इसके पिता का नाम ह्रस्वरोमन् था (७१.१२) । ‘सीर’ का शब्दशः अर्थ ‘हल’ होता है । यही हल इसके कीर्ति का कारण बन जाने के कारण, इसे ‘सीरध्वज’ नाम प्राप्त हुआ
[भा. ९.१३.१८] ।
सीरध्वज (जनक) n. एक बार यह अग्निचयन के लिए भूमि पर हल चला रहा था, उस समय इसे सीता की प्राप्ति हुई (सीता देखिये) । सीता बड़ी होने पर सांकाश्या नगरी के सुधन्वन् राजा ने सीता की माँग की । इसके द्वारा इस माँग का इन्कार किये जाने पर सुधन्वन् ने इस पर हमला किया । उस युद्ध में इसने सुधन्वन् का वध किया, एवं अपने पुत्र कुशध्वज को सांकाश्या नगरी का अधिपति नियुक्त किया
[वा. रा. बा. ७१.१६-१९] ।
सीरध्वज (जनक) n. सीता अत्यंत स्वरूपसुंदर होने के कारण, भारतवर्ष के अनेकानेक राजा उससे विवाह करना चाहते थे । सीताविवाह के लिए इसने शिवधर्नुभंग का प्रण निश्चित किया । वह प्रण किसी भी राजा ने पूर्ण नहीं किया । अन्त में सीताविवाह के संबंध में निराश हुए राजाओं ने एकत्रित हो कर मिथिला नगरी को घेर लिया । यह घेरा लगातार एक वर्ष तक चालू रहा, जिससे यह अत्यधिक त्रस्त हुआ । अन्म में दैवी सहायता के कारण, इस संकट से यह मुक्त हुआ
[वा. रा. बा. ६६] ।
सीरध्वज (जनक) n. आगे चल कर, इसने वाजपेय यज्ञ किया, जिसके उपलक्ष्य में विश्र्वमित्र ऋषि अयोध्या के राजकुमार राम एवं लक्ष्मण को मिथिला नगरी में ले आये। शिववतुभंग का इसका प्रण राम ने पूरा किया, एवं सीता का वरण किया । पश्चात् इसकी दो कन्याएँ सीता एवं ऊर्मिला, एवं इसके भाई कुशध्वज की दो कन्याएँ मांडवी एवं श्रुतकिर्ति के विवाह क्रमश अयोध्या के राजकुमार राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न से सुमुहूर्त पर संपन्न हुए
[वा. रा. बा. ७०-७४] । पद्म में ऊर्मिला इसकी नहीं बल्कि इसके बंधु कुशध्वज की कन्या दी गयी है ।