बृहदश्व n. (सू.इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो श्रावस्त का पुत्र था । इसका राजधानी श्रावस्ती नगरी में थी, एवं इसके पुत्र का नाम कुवलाश्व था । यह एक आदर्श एवं प्रजाहितदक्ष राजा था । वृद्धापकाल में, इसने अपने पुत्र कुवलाश्व को राजगद्दी पर बिठा कर, वानप्रस्थाश्रम के लिये अरण्य में जाना चाहा । किन्तु उत्तंक ऋषि ने इसे रोंक दिया, एवं वन में जाने के पहले धुंढु नामक दैत्य का विनाश करने की प्रार्थना इसने की । फिर इसने अपने पुत्र कुवलाश्व को धुंधु दैत्य को नष्ट करने की आज्ञा दी, एवं स्वयं वन चल गया
[म.व.१९३-१९४] ;
[वायु.६८] ;
[विष्णुधर्म १.१६] ।
बृहदश्व II. n. एक महर्षि, जो काम्यकवन में युधिष्ठिर से मिलने आये थे । युधिष्ठिर ने इसका उचित आदर सत्कार किया, एवं इसके प्रति अपने दुःखदैन्य का निवेदन किया । इसने युधिष्ठिर को समझाते हुए निषधराज नल के दुःखदैन्य की कथा उसे सुनाई । पश्चात् युधिष्ठिर को ‘अक्षहॄदय’ एवं ‘अश्वशिर’ नामक विद्याओं का उपदेश दे कर, यह बिदा हो गया
[म.व.७८] । शरशय्या पर पडे हुए भीष्म से मिलने आये ऋषियों में, यह भी शामिल था
[भा.१.९.६] ।
बृहदश्व III. n. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
बृहदश्व IV. n. शिव के श्वेत नामक दो अवतारों में श्वेत (द्वितीय) का शिष्य ।
बृहदश्व V. n. (सू.इ.भविष्य.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो सहदेव राजा का पुत्र था । मत्स्य में इसे ‘ध्रुवाश्व’ कहा गया है ।