बाष्कलि n. प्रह्राद का पुत्र
[पद्म. सृ.६] ।
बाष्कलि (भारद्वाज) n. एक आचार्य , जो वायु एवं भागवत के अनुसार व्यास की ऋक्शिष्यपरंपरा के सत्यश्री ऋषि का शिष्य था ।
बाष्कलि II. n. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं मंत्रकार ऋषि । यह वालखिल्य संहिता का रचयिता था, जो इसने अपने बालायनि भज्य, एवं कासार नामक शिष्यों को सिखायी थी
[भा.१२.६.५९] ।
बाष्कलि III. n. एक ऋग्वेदी श्रृतर्षि एवं ब्रह्मचारी ।
बाष्कलि IV. n. एक तत्त्वज्ञ, जिसका निर्देश शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्र भाष्य में प्राप्त हैं । उक्त ग्रन्थ में इसका एवं बाध्व ऋषि के बीच हुए शास्त्रार्थ एक आख्यायिका के रुप में वर्णित है। बाष्कलि ने बाध्व से पूँछा ‘ब्रह्म कैसा है? ’ वह मौन रहा । उसकी मौनता को देख कर, इसने दो तीन बार अपने प्रश्न को बार बार रक्खा । तब बाध्व ने कहा, ‘अपने मौन सम्भाषण से ही, मै व्यक्त कर चुका हूँ कि, ब्रह्म अनिर्वचनीय है (यतो वाचो निवर्तन्ते) । अब तुम समझ न सको तो दोष किसका है?’
[ब्र.सू.३.२.१७] । बाध्व द्वारा बाष्कलि को ब्रह्म की स्वरुपता का कराया हुआ यह ज्ञान, बडा नाटकीय एवं तार्किक है ।
बाष्कलि V. n. एक दैत्य, जिसने तपस्या के बल पर सार त्रैलोक्य जीत कर इन्द्रपद प्राप्त किया । विष्णुधर्म एवं पद्म में इसकी कथा दी गयी है, जो सम्पूर्णतः बलि वैरोचन की वामनावतार की कथा से मिलती जुलती है । इसे ‘त्रिविक्रम’ का अवतार कहा गया है । सम्भव है, यह एवं ‘बलि वैरोचन’ दोनों एक ही हो । इसके द्वारा इंद्रपद प्राप्त कर लेने का बाद, वामनावतारी विष्णु ने ब्राह्मणकुमार के रुप में आ कर, इससे यज्ञ के लिए तीन पग भूमि दान मॉंगी । जैसे ही बाष्कलि ने दानसंकल्प के लिये अर्घ्य दिया, कि वामन ने विशाल रुप धारण कर, एक पग से ब्रह्मांड , द्वितीय से सूर्यमण्डल तथ तृतीय से ध्रुवमण्डल नाप कर, इसके सम्पूर्ण श्वेय का हरण कर लिया । वामन ने जैसे ही ब्रह्मांड पर पैर रक्खा, वैसे ही उसके पगस्पर्श से वह फूट गया, तथा उससे गंगा की धारा फूट चली
[विष्णुधर्म.२१.१] ;
[पद्म. सृ.३०] ।