बभ्रुवाहन n. मणिपुरनरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा के गर्भ से अर्जुनद्वारा उत्पन्न एक शूरवीर शासक
[म.आ.२०७.२१-२३] । चित्रवाहन ने अर्जुन को अपनी कन्या देने से पूर्व वह शर्त रक्खी थी कि, ‘इसके गर्भ से जो भी पुत्र होगा, वह यही रह कर इस कुलपरम्परा का प्रवर्तक होगा । इस कन्या के विवाह का यही शुल्क आपको देना होगा ।’ ‘तथास्तु’ कह कर अर्जुन ने वैसा ही करने की प्रतिज्ञा की ।
बभ्रुवाहन n. चित्रांगदा के पुत्र हो जाने पर उसक नाम बभ्रुवाहन रख्खा गया । उसे देख कर अर्जुन ने राजा चित्रवाहन से कहा---‘महाराज! इस बभ्रुवाहन को आप चित्रांगदा के शुल्क के रुप में ग्रहण किजिये, जिससे मैं आप के ऋण से मुक्त हो जाऊँ ’। इस प्रकार बभ्रुवाहन धर्मतः चित्रवाहन का पुत्र माना गया
[म.आ.२०६.२४-२६] । चित्रवाहन राजा उसी प्रभंजन राजा का वंशज था, जिसने पुत्र न होने पर शंकर की तपस्या कर पुत्रप्राप्ति के लिये वर प्राप्त किया था (प्रभंजन देखिये) । चित्रवाहन के उपरांत यह मणिपूर राज्य का अधिकारी बना, जिसकी राजधानी मणलूरपूर थी
[म.आ.३.८१] ; परि. १, क्र.११२ । युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ के समय, इसने सहदेव को करभार दिया था
[म.स.परि.१] ;
[क्र.१५. पंक्ति ७३] ।
बभ्रुवाहन n. युधिष्ठिर द्वारा किये गये अश्वमेध के अश्व के साथ, घूमता घूमता अर्जुन इसके राज्य में आया था । इसने यज्ञ का अश्व देख कर उसे अपने अधिकार में कर लिया । पर जैसेहि इसे पता चला कि, यह मेरे पिता का ही अश्व है, इसने अश्व को धनधान्य तथा द्रव्यादि के साथ अर्जुन के पास लौटा दिया । अर्जुन ने बभ्रुवाहन के इस कार्य की कटु आलोचना की, तथ इसकी निर्बलता तथा असहाय स्थिति पर शोक प्रकट करते हुए इसके द्वारा दिये गये द्रव्यादि को लौटा दिया । अर्जुन के व्यंग वचनों को सुन कर, इसने अपने मंत्री सुबुद्धि के साथ यज्ञ के अश्व को पकड कर नगर भेज दिया, तथा अपने सेनापति सुमति के साथ ससैन्य अर्जुन पर धावा बोल दिया । इस युद्ध में बभ्रुवाहन ने अपने अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया, तथा अर्जुन को रण में परास्त कर उसका वध किया । इसी युद्ध में कर्णपुत्र वृषकेतु का भी इसने वध किया
[जै.अ.३७] । विजयोल्लास में निमग्न बभ्रुवाहन राजधानी वापस लौटा, तथा अपनी वीरता की कहानी के साथ अर्जुन की मृत्यु का समाचार इसने चित्रांगदा को कह सुनाया । यह समाचार सुनते ही, इसके मॉं शोक में विलाप करती हुयी पति के शव के साथ सती होने को तत्पर हुयी । इस प्रतिक्रिया को देख कर, अपनी माता-पिता का हत्यारा अपने को मान कर, यह स्वयं ही आत्महत्या के लिये प्रस्तुत हुआ ।
बभ्रुवाहन n. उक्त स्थिति को देख कर, इसकी सौतेली मॉं उलूपी, जो अर्जुन की नागपत्नी थी, वह भी दुःखित हुयी । उसने इसे तथा चित्रांगदा को सात्वना देते हुए उसे बतायी कि, यदि यह शेषनाग के पास जा कर मृतसंजीवन मणी को ले आये, तो अर्जुन पुनः जीवित हो सकता है । इसपर यह शेषनाग से मणि लाने गया, किंतु अन्य सर्पो के बहकाने पर शेषनाग ने इसे मणि देने से इन्कार कर दिया । अन्त में, शेषनाग को युद्ध में परास्त कर, यह उस मणि को लेकर अपने नगर वापस आया । मनि को लेकर यह अर्जुन के शवके पास गया । किंतु इसने वहॉं देखा कि, अर्जुन का कटा हुआ सर किसी के द्वारा चुरा लिया गया है । यह बडा हताश हुआ, किन्तु कृष्ण ने अपने पुण्यप्रभाव से पुनः उस सर को वापस लाया । इस प्रकार अर्जुन मणि के द्वारा जीवित किया गया । दोनों पिता-पुनः मिले, तथा अर्जुन अश्वमेध अश्व के साथ चल पडा
[जै.अ.२१-४०] । महाभारत में अर्जुन एवं बभ्रुवाहन के बीच हुए युद्ध की कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है। इस ग्रन्थ में अर्जुन की मृत्यु नहीं दिखायी गई है, बल्कि दिखाया गया है कि, बभ्रुवाहन ने अपनी सौतेली माता उलूपी के द्वारा प्राप्त किये हुए मायावी अस्त्रों के द्वारा अर्जुन को युद्ध में मूर्च्छित किया (उलूपी देखिये) । यह घटना सुन कर चित्रांगदा ने उलूपी की निर्भत्सना की, तथा उसे बुरा भला कहा । उलूपी ने अपनी गल्ती स्वीकार कर बभ्रुवाहन को मृतसंजीवक मणि दी, तथा कहा ‘इसे ले जा कर अर्जुन के वक्षस्थल पर रक्खो । वह पुनः जीवित हो जायेगा’
[म.आश्व.८१.९-१०] । मणि के स्पर्श से अर्जुन पुनः जीवित हो उठा । पितापुत्र दोनों गले मिले । पश्चात्, अर्जुन ने बडे सम्मान के सथ बभ्रुवाहन को युधिष्ठिर के होनेवाले अश्वमेध के लिये निमंत्रित किया, एवं यह अपनी दोनों माताओं के साथ यज्ञ में सम्मिलित हुआ
[म.आश्व.९०.१] ।
बभ्रुवाहन II. n. कृतयुग का एक राजा । एक बार यह, मृगया के हेतु वन को गया था, जहॉं सुदेव की प्रेतात्मा ने अपने पूर्वजन्म की कथा इससे कही थी
[गरुड.२.९] ।