घोषा n. कक्षीवत की सूक्तद्रष्टी पुत्री
[ऋ. १०.३९-४०] । कुष्ठरोग होने के कारण, इसे पिता के घर अविवाहित रहना पडा । अश्वियों की कृपा से इसका कुष्ठ दूर हुआ
[ऋ. १०.३९,३-६] , तथा इसे पति भी मिला
[ऋ. १.११७] । रोगग्रस्त रहने के कारण, यह साठ वर्षो तक पिता के गृह में अविवाहित स्थिति में रही । पिता की तरह अश्वियों को प्रसन्न कर, यह निरोगी हुई तथा इसे पति मिला
[बृहद्दे.७.४३, ४८] । इसके पति का नाम नहीं मिलता । इसे घोश तथा सुहस्त्य नामक पुत्र थे
[बृहद्दे. ७.४८] ; सुहस्त्य देखिये । मातापिता पुत्र को शिक्षा देते है, उसी तरह शिक्षा देने के लिये इसने अश्वियों से प्रार्थना की थी
[ऋ. १०. ३९.६] । शत्रुओं से युद्ध करने में समर्थ बनाने के संबंध से इसकी प्रार्थना का उल्लेख है
[ऋ. १०.४०.५] ।