आचार्य को तिलक करे -
ॐ गन्ध द्वारा दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्व भुतानां तामिहोपह्वे श्रियम् ॥
आचार्य को अक्षत लगाए -
ॐ अक्षत नाममदनतहये व पिवा अधूषता । अस्तोषत स्वभानवो विप्रान मतीयोजान्विन्द्रते हरी ।
आचार्य को माला पहनाए -
ॐ यद्यशोप्सरसा मिन्द्रश्चकार विपुलं पृथु । तेन संग्राथिता सुमन
स आवध्नामि यशोमयि ।
आचार्य को दक्षिणा दें -
ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
सदाधार पृथिवीन्द्यामुतेमां कस्मैं देवाय हविषा विधेम् ।
आचार्य की प्रार्थना करें -
गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णुगुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
पुनः आचार्य से प्रार्थना करें - कि हे प्रभो ! यथा विहित पूजन करवाइए जिससे भगवती प्रसन्न हों और मेरा तथा मेरे परिवार का कल्याण करें ।
आचार्य बोले कि मैं यथाविहित ही पूजन करवाऊँगा ।
जब आचार्य यजमान को पुष्प अक्षत देकर स्वस्ति वाचन करें -
ॐ स्वास्तिन ऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वास्तिनः पूषा विश्ववेदाः । स्वास्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो वृहस्पतिर्द धातु । पृषदश्वामरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निर्जिह्वामनवः सूरचक्षसो विश्वेनोदेवा अवसागमन्निह । भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रम्पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरंगैस्तुष्टुवा सस्तनूव्यसेमहि देव हितं यदायुः । शतामिन्नुशरदोऽअन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसन्तनूनाम् । पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मानो मद्धयारीरिषतायुर्गन्तोः । अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्ष मदितिर्म्माता स पिता स पुत्रः । विश्वेदेवाऽअदितिः पञ्चजनाऽअदितिर्ज्जातमदितिर्जनित्वम् दीर्घायुत्वाय वलाय वर्चसे सुप्रजा त्वाय सहसा अथो जीव शरदः शतम् । द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथ्वी शान्तिः आपः शान्तिः ओषधयः शान्तिः वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्ति ब्रह्मशान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः विश्वेदेवाः शान्ति ब्रह्मशान्तिः सर्व शान्तिः वनस्पतयः शान्तिः विश्वेदेवाः शान्ति ब्रह्मशान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि । विश्वानि देव सवितुर्दुरितानिपरऽसुवऽसद्भद्रं तन्न आसुव ॥ सुशान्तिर्भवतु ॥
पूजन करते समय तक देवी का ध्यान बराबर करते रहना चाहिए । वह इस प्रकार है - रक्तवर्ण वाले जल का एक समुद्र है, वह मानो एक जहाज है, जिस पर एक कमल खिला हुआ है, इस रक्तोत्पल पर कामाख्या देवी विराजमान हैं जिनके तीन सिर हैं, जो अपने छः कर - कमलों में त्रिशूल, इक्ष धनुष, रत्नजटित पाश, अंकुश, पाँच बाण, रक्त पूर्ण कपाल ( खप्पर ) धारण कर रही हैं । तीन नेत्र इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं, स्थूल स्तनों तथा सुन्दर नितम्बों से युक्त हैं, बाल सूर्य के समान लाल वर्ण हैं जिनके - ऐसी कामाख्या भगवती हमें सुख प्रदान करें ।
वह देवी अपने भक्तों को इच्छित वरदान देने को उत्सुक दिखाई पड़ती है उनके पीछे शिवजी हैं । शिवजी के बगल में नन्दी वृषभ है जबकि देवी के बगल में सिंह हैं । वे नाना आभूषणों से सुसज्जित हैं । उनकी प्रभा चारों ओर फैल रही हैं, संसार की उत्पत्ति पालन और संहार के स्थान वही है ।
इस प्रकार की मूर्ति या तस्वीर भी रखकर पूजा की जा सकती है । कामाक्षा यन्त्र की तो पूजा अवश्यमेव करना चाहिए । इसके अभाव में पार्वती की ही तस्वीर रख लेना चाहिए ।
एक बात और ध्यान रहे कि देवी की आराधना चतुर्भुजी या दशभुजी रुप में भी कर सकते हैं । यह तो साधक की कामना और भक्ति पर निर्भर हैं ।