भगवती को प्रसन्न करने का यह अदभुत श्रेष्ठ साधन है । पूरे वर्ष हर महीने इस विधि से पूजा करनी चाहिए । यह एक प्रकार या अनुष्ठान है जिसको प्रत्येक महीने केवल देवी पूजा करके ही पूर्ण किया जा सकता है ।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष में तृतीया के दिन महुआ के वृक्ष में भगवती की स्थापना करके वृक्ष की पूजा करें । उस वृक्ष को पाँचों प्रकार के खाद्य नैवेद्य अर्पण करना चाहिए । इस प्रकार बारह महिने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पूजन का विधान है । इनमें वैशाख मास में गुड़ निर्मित पदार्थ भोग लगाना चाहिए । ज्येष्ठ में मधु, आषाढ़ में मक्खन से बना पदार्थ, श्रावण में दही, भादों में चीनी, आश्विन में खीर, कार्तिक में दूध, अगहन में फेनी, पौष में लस्सी, माघ में गोघृत तथा फाल्गुन मास में नारियल अर्पण करने का विधान है । इस प्रकार बारहों महीने में बारह प्रकार के नैवेद्यों से देवी का पूजन क्रमशः करना चाहिए । मंगला, वैष्णवी, माया, कालरात्रि, दुरत्यया, महामाया, मातंगी, काली, कमलवासिनी, शिवा, सहस्रचरणा तथा सर्व मंगलरुपिणी - इन द्वादश नामों का उच्चारण करके महुए के वृक्ष में विराजने वाली देव देवेश्वरी महादेवी भगवती शिवा को व्रत समाप्ति पूर्वक समस्त कामनाओं की सिद्धि के लिए इस प्रकार उनकी स्तुति करे -
नमः पुष्करनेत्रायै जगद्धात्र्यै नमोऽस्तु ते ।
माहेश्वर्ये महादेव्यै महामङ्गलमूर्त्तये ॥
परमा पापहन्त्री च परमार्ग प्रदायिनी ।
परमेश्वरी प्रजोत्पत्तिः मातगस्या महीश्वरः ।
मनस्विनी मुनिध्येया मार्तण्डसहचारिणी ॥
जय लोकेश्वरि प्राज्ञे ! प्रलयाम्बुदसन्तिभे ।
महामोह विनाशार्थ पूजिताऽसि सुराऽसुरैः ॥
यमलोकाऽभावर्त्री यमपूज्यां यमाऽग्रजा ।
यमनिग्रह रुपा च यमनीये नमोनमः ॥
समस्वभावा सर्वेशी सर्वसङ्गविवर्जिता ।
सङ्गनाशकरी काम्यरुपा कारुण्यविग्रहा ॥
कङ्कलक्रूरा कामाक्षी मीनाक्षी मर्मभेदिनी ।
माधुर्यरुपशीला च मधुरस्वरपूजिता ॥
महामन्त्रवती मन्त्रगम्या मन्त्रप्रियङ्करी ।
मनुष्यमान सगमामन्मथारी प्रियङ्करी ॥
अश्वत्त्थवटनिम्बाऽम्रक पित्थ बदरीगते ! ।
पसाऽर्ककरीरादि क्षीरवृक्षस्वरुपिणि ! ॥
दुग्धवल्लीनिवासार्हे ! दयनीये वलाधिके ! ।
दाक्षिण्य करुणारुपे जय सर्वज्ञ वल्लभे ! ॥
यह स्तोत्र देवी को परम प्रिय है । पूजनोपरान्त इस प्रकार की स्तुति से देवेश्वरी जगदम्बा की स्तुति करने वाले मनुष्यों को व्रत सम्बन्धी सम्पूर्ण पुण्य सुलभ हो जाते हैं । यह स्तोत्र देवी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम साधन है । अतः जो मनुष्य इसका निरन्तर पाठ करता है उसे आधि - व्याधि तथा शत्रु आदि का भय नहीं रहता । इस स्तोत्र के प्रभाव से धनार्थी धन तथा धर्मार्थी पुरुष धर्म पा लेता है । इस स्तोत्र में वशीकरण शक्ति है, अतः प्रतिदिन पढने वाले के वश में सारा चराचर रहता है । किसी प्रकार के मनोरथ की इच्छा रखने वाले के मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं और मुमुक्षु पुरुष मोक्ष पा लेते हैं । यहाँ तक कि चारों वर्ण के लोग अपने - अपने कर्त्तव्य में सफलता प्राप्त कर लेते हैं, अर्थात् ब्राह्मण वेद - सम्पन्न, क्षत्रिय विजयी, वैश्य धनाढ्य एवं शूद्र अपनी सेवाओं से सुख सम्पन्न हो जाता है । अतः जो मनुष्य श्राद्धकाल में एकाग्र मन से इस स्तोत्र का पाठ करता है या सुनता है, उसके पितर लोग कल्पान्त तक तृत्प रहते हैं । देवताओं से पूजित एवं मुक्ति - प्रदात्री इस भगवती की आराधना को जो मनुष्य श्रद्धा - भक्ति के साथ नित्य करता है, वह अवश्य ही देवीलोक का अधिकारी होता है । देवी पूजा के प्रभाव से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और अन्त में सभी पापों को हरने वाली विशुद्ध बुद्धि प्राप्त होती है । वह पुरुष जहाँ - जहाँ जाता है, वहाँ - वहाँ सर्वत्र ही उसे धन - धान्य एवं सुयश लाभ होता है । देवी के भक्तजन को स्वप्न में भी नरक का भय नहीं रहता, और उनकी कृपा से पुत्र - पौत्रादि को वृद्धि में पूर्ण सफलता मिलती है । श्री कामाख्या देवी की पूजा एवं स्तुति सब प्रकार के मंगलों को देने वाली है । साथ ही बारहों मास महुए के वृक्ष के पूजन भी सब कामनाओं को देने वाला है । इसलिए सबको विधिवत् देवी पूजन करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने वाले लोगों को न कभी रोग होता है न कोई भूत - प्रेतादि की बाधा सताती है । साथ ही यह स्तोत्र ही मन्त्र भी है । प्रतिदिन इसका पाठ करने वाला यदि इस मन्त्र को पढ़्कर रोगी को झाड़ दें तो केवल ५ - ५ बार प्रतिदिन झाड़ने से ५ दिन में भूत - प्रेत निश्चय ही रोगी को छोड़कर भाग खड़े होते हैं और रोगी रोग मुक्त हो जाता है ।