जो मनुष्य श्रीदेवी को श्रद्धा भक्तिपूर्वक पंचामृत से स्नान कराता है, वह देवी के सायुज्य को प्राप्त होता है । जो लाल गन्ने के रस से भरे हुए सँकडों घड़े ( कलशों ) द्वारा भगवती को स्नान कराता है, वह आवागमन से रहित हो जाता है । जो पुरुष आम के रस से या ईख के रस से देवी का अभिषेक करता है अथवा अंगूर या मुनक्का के रस से स्नान कराता है, वह देवीलोक को जाता है । जो पुरुष कपूर, अगरु, केसर, कस्तूरी तथा कमल के जल से देवी को स्नान कराते हैं, उनके सैकड़ों जन्म के अर्जित पाप पुंज भस्मीभूत हो जाते हैं । जो कलश में भरे दूध से देवी को स्नान कराते हैं, वे कल्प पर्यन्त क्षीरसागर में निरन्तर निवास करते हैं । इसी प्रकार जो दही से स्नान कराते हैं वे दधिसागर या दधिकुण्ड के अधिपति होते हैं । मधु - घृत तथा शर्करा ( विषम भाव से मिश्रित ) के रस से स्नान कराने वाले पुरुषों को उन उन वस्तुओं के स्वामी होने का सौभाग्य प्राप्त होता है, अर्थात् वे मधुकुल्यादि नदियों के स्वामी होते हैं । जो लोग भक्तिपूर्वक सहस्रों घड़ों से देवी को स्नान कराते हैं, वे इस लोक में जीवनपर्यन्त सुखी रहते हैं और अन्त में परलोक में भी सुखी होते हैं ।
जो भक्त देवी को श्रद्धा भक्ति पूर्वक रेशमी वस्त्र चढ़ाते हैं वे वायुलोक में जाते हैं । जो रत्न निर्मित भूषण प्रदान करते हैं, वे धनाढ्य घर में जन्म पाकर खजाने के स्वामी बनते हैं । जो काश्मीर का या मलयागिरि का चन्दन तथा कस्तूरी की बिन्दी देवी के भाल पर चढ़ाते हैं और चरणों में महावर लगाते हैं, वे देवताओं के स्वामी बनकर इन्द्रासन पर विराजमान होते हैं ।
अब पुष्प - फल चढ़ाने का विधान बताते हैं । देवी को अनेक प्रकार के फल - फूलादि चढ़ाने चाहिए । उन तथा प्राप्त वस्तुओं को देने वाले देवी की कृपा से कैलास को प्राप्त होते हैं । इसी प्रकार परा देवता को जो लोग विल्वपत्र चढ़ाते हैं । उन्हें कहीं कभी किसी प्रकार का क्लेश नहीं होता । त्रिदल विल्वपत्र पर रक्त चन्दन से सुन्दर एवं स्पष्ट एवं स्पष्ट अक्षरों में मायाबीज ' ह्नीं ' तीन बार ( तीन फांक पर ) लिखे और बड़ी सावधानी से महामाया मूल प्रकृति के मूल मन्त्र ( ॐ ह्नीं भुवनेश्वर्यै नमः ) से महादेवी जगदम्बा के श्री चरणों पर श्रद्धा भक्ति के साथ उस कोमल पवित्र पत्र को चढ़ाए । इस प्रकार प्रेम पूर्वक नियम से जो भगवती की उपासना करता है, वह ' मनु ' ( राजराजेश्वर ) होता है । साथ ही जो इसी प्रकार लिखकर एक करोड़ कोमल एवं निर्मल विल्वपत्र देवी को समर्पण करता है, वह ब्रह्माण्ड का अधिपति ( ब्रह्मा ) बन पुष्पों द्वारा देवी की अर्चना करता है, वह निश्चय ही प्रजापति के पद का अधिकारी हो जाता है । ऐसे ही अष्टगन्ध - चर्चित कोटि - कोटि मल्लिका एवं मालती से भगवती की जो पूजा करता है, वह चतुर्मुख ब्रह्मा होता है । दस करोड़ से पूजा करने वाला मनुश्ज्य देव - दुर्लभ विष्णु - पद को प्राप्त कर लेता है । क्योंकि पूर्वकाल के मन्वनतर में विष्णु भगवान् ने भी इस पद की प्राप्ति के लिए यह व्रत किया था । इस प्रकार सौ करोड़ पुष्पों को चढ़ाने से सूत्रात्मा ( सूक्षमब्रह्म ) की प्राप्ति होती है । क्योंकि विधिवत् भक्तिपूर्वक किए गए इस व्रत के प्रभाव से ही भगवान् विष्णु भी पूर्व समय में ' हिरण्यगर्भ ' कहलाए । जो कनेर के फूल, कमल तथा चम्पा के फूल से देवी की पूजा करते हैं वे पुण्यात्मा मनुष्य शक्ति की भक्ति में सर्वदा निरत होने के कारण विविध प्रकार के भोग - विलास का आनन्द लेते हैं । यों तो जपाकुसुम ( अड़हुल ), बन्धूक ( दुपहरिया का फूल ) तथा दाडिम ( अनार ) का पुष्प भगवती को विशेष प्रिय हैं । अतः इन्हें देवी को चढ़ाने । का विधान है । इनके अतिरिक्त और भी अनेक दिव्य पुष्प विधिवत् समर्पण करके देवी को प्रसन्न करना चाहिए । ऐसे दिव्य पुष्प विधिवत् समर्पण करके देवी को प्रसन्न करना चाहिए । ऐसे देवी भक्तों के पुष्प - फल का अनन्त विस्तार साक्षात् भगवान् भी करने में समर्थ नहीं हो सकते । इसलिए तत्तत् ऋतु के अनुसार उत्पन्न होने वाले पुष्प - फलों को चढ़ाकर सर्वदा श्री महादेवी की पूजा करनी चाहिए । इस प्रकार भक्ति पूर्वक जो भगवती की उपासना करता है, उसके सभी महापातक, उपपातक आदि भस्म हो जाते हैं और शरीरान्त ( मरण ) होने पर श्री भगवती के देव दुर्लभ चरण - कमलों को प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह की बात नहीं है ।
काला अगुरु, कपूर, चन्दन, सिल्हक ( लोहबान ), घृत एवं गुग्गुल से धूप देने पर भगवती बहुत प्रसन्न होती हैं, क्योंकि उससे देवी का स्थान भी सुवासित हो जाता है । इससे सन्तुष्ट होकर देव - देवेश्वरी श्रीदेवी जी साधक को तीनों लोकों का वैभव दे देती हैं । अतः कपूर खण्डों से युक्त दीपक देवी को सर्वदा समर्पण करें । इस प्रकार सैकड़ों तथा सहस्रों दीप - दान से निः सन्देह सूर्यलोक की प्राप्ति होती है ।
इसके बाद देवी के सामने विविध प्रकार के नैवेद्य अर्पण करें । उनमें लेह्य, चोष्य, पेय, भोज्य तथा षडरस सभी पदार्थ हों । अनेक प्रकार के स्वादिष्ट रसीले दिव्यफल हों । ये सभी पदार्थ यथा सम्भव सुवर्ण - पात्रों में रखकर समर्पित करने चाहिए । क्योंकि महादेवी के तृप्त हो जाने पर तीनों लोक तृप्त हो जाते हैं । अखिल संसार के समस्त चराचर प्राणी उन्हीं के रुप तो हैं । अन्त में प्रचुरमात्रा से देवी को पवित्र गंगाजल अर्पित करें । कपूर तथा नारियल युक्त कलश जल ( शीतल जल ) भी देवी को भेंट करें ।
तत्पश्चात् मुखशुद्धि के लिए ताम्बूल, लवंग, इलायची आदि अर्पण करना चाहिए । वह ताम्बूल सुगान्धित द्रव्यों से मिश्रित रहे यह स्मरण रखने की बात है । इन्हें भक्तिपूर्वक अर्पण करने से भगवती जगदम्बा शीघ्र प्रसन्न होती है । फिर मृदंग, वीणा, मञ्जीर, डमरु तथा दुन्दुभी ( नगारे ) आदि वाद्यों की ध्वनि से अत्यन्त मनोहर संगीत, कीर्तन, प्रार्थना, स्तुति, वेदपुराणों के पाठ से उन्हें सन्तुष्ट करना चाहिए । इसके बाद श्रद्धा भक्ति और प्रेमपूर्वक श्रीभगवती को छत्र और चंवर अर्पण करें तथा राजोचित पूजा सामग्री से देवी की उपासना करें । साथ ही देवी को विविध प्रकार की दान - दक्षिणा देकर नमस्कार पूर्वक उनसे बार - बार क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए यही नियम है ।
तन्त्रोक्त विधि से ही पूजा करना चाहिए । जो कोई तन्त्रोक्त मन्त्रों द्वारा भगवती का पूजन करते हैं, वे सब इस संसार में सब प्रकार के ऐश्वर्यो से युक्त होते हैं, अर्थात् धन - धान्य, पुत्र - पौत्र एवं सुयश पाकर संसार में सम्मानित होते हैं । वे सम्राट् होते हैं और सभी राजाओं में श्रेष्ठ माने जाते हैं ।
निषेध - अक्षत से भगवान् विष्णु की, तुलसी से गणेश की, दूर्वा से देवी की और केतकी के फूल से शिवजी की पूजा नहीं करना चाहिए, ऐसा विधान है ।