महामाया की दस महाविद्या अर्थात् दस विभूतियों के अन्तर्गत षोडशी, कामाख्या देवी का ही अन्य नाम है, एवं वे ही देवीपीठ में अवस्थित हैं । इसी देवीपीठ से संलग्न पूर्वप्रान्तर में मातंगी ( सरस्वती ) एवं कमला ( लक्ष्मी ) देवी का पीठस्थान है । यहाँ यथाशक्ति पूजा कर प्रणाम करें ।
प्रणाम मन्त्र
सदाचार प्रिये देवि, शुक्ल पुष्पाम्बर प्रिये ।
गोमयादि शुचि प्रीते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः ।
वेदवेदान्तवेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च ॥
स्पर्शन मन्त्र
मध्ये च कुब्जिके देवि प्रान्ते प्रान्ते च भैरवी ।
एकैक स्पर्शनात् देव्याः कोटि जन्माघनाशनम् ॥
इसके बाद महामाया का दर्शन, स्पर्शन, पूजनादि करें । अनन्तर चलन्ता मन्दिर के चारों ओर दीवालों से संलग्न देव - देवियों की मूर्ति का दर्शन करें । मंगलचण्डी, कल्कि अवतार, युधिष्ठिर, श्री रामचन्द्र, बटुक भैरव, नारायण गोपाल, कूचविहार के राजा नर नारायण की प्राचीन मूर्ति, नील - कण्ठ महादेव, नन्दी, भृंगी, कपिल मुनि, मनसा देवी, जरत्कारु मुनि, कूचविहार के दोनों महाराजों का मन्दिर निर्माणादि विषय कीर्तिज्ञापक शिलालिपि आदि तथा पंचरत्न मन्दिर की चामुण्डा देवी का दर्शन करें ।
चामुण्डा का प्रणाम मन्त्र
महिषाघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि ।
आयुरारोग्यमैश्वर्य देहि मे परमेश्वरि ।
इसके अतिरिक्त नाटमन्दिर के भीतर, आहोम राजा राजेश्वरसिंह और गौरीनाथसिंह की शिला और ताम्रलिपियाँ हैं । यात्रियों के तीर्थकृत्य, कर्मकाण्ड विशेषकर कुमारी पूजा, दान, भोज्य उत्सर्ग आदि कर्मानुष्ठान इसी पंचरत्न मन्दिर के भीतर तीर्थ के पुजारी ब्राह्मणगण सम्पादन करवाते हैं ।
कुमारी पूजा
महातीर्थ कामाख्या में महामाया कुमारी रुप में विराजमान हैं । यात्रीगण देवी भाव से कुमारी पूजा कर कृतकृत्य होते हैं । जिस तरह प्रयाग में मुण्डन एवं काशी में दण्डी भोजन करवाने की विधि है, उसी तरह कामाख्या में कुमारी पूजा आवश्यक कर्त्तव्य है । यहाँ कुमारी पूजा करने से सर्व देवदेवियों की पूजा करने का फल प्राप्त होता है । भक्तिभाव एवं कर्त्तव्य बुद्धाय कुमार पूजा करने से अवश्य पुत्र, धन, पृथ्वी, विद्या आदि का लाभ होता है एवं मन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है ।
सर्वविद्यास्वरुपा हि कुमारी नात्र संशयः ।
एकाहि पूजिता बाला सर्वं हि पूजितं भवेत् ॥
- योगिनीतन्त्र
कुमारी सर्वविद्या स्वरुपा है, इसमें सन्देह नहीं । एक कुमारी पूजा करने से सम्पूर्ण देव - देवियों की पूजा का फल होता है ।
ध्यानम्
ॐ बालरुपाञ्च त्रैलोक्य सुन्दरीं वरवर्णिनाम् ।
नानालंकार नाम्राङ्गीं भद्रविद्या प्रकाशिनीम् ।
चारुहास्यां महानन्द हदयां चिन्तयेत् शुभाम् ॥
आवाहनम्
ॐ मन्त्राक्षरमयीं देवीं मातृणां रुपधारिणीम् ।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम् ॥
प्रणाम मन्त्र
ॐ जगदवन्दे जगतपूज्ये सर्वशक्ति स्वरुपिणि ।
पूजां गृहाण कौमारी जगन्मातर्नमोऽस्तु ते ॥
देवी मन्दिर का प्रदक्षिणा मन्त्र
यानि यानीह पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ॥