तपोभूमिदण्डकारण्य - क्षेत्रमें अनेकानेक ऊर्ध्वरेता ब्रह्मवादी ऋषियोंने घोर तपस्याएँ की हैं । कठिन योगाभ्यास एवं प्राणायामादिद्वारा संसारके समस्त पदार्थोसे आसक्ति, ममता, स्पृहा एवं कामनाका समूल नाश करके अपनी उग्र तपस्याद्वारा समस्त इन्द्रियोंपर पूर्ण विजय प्राप्त करनेवाले अनेकानेक ऋषियोंमेंसे शरभङ्गजी मी एक थे ।
अपनी उत्कट तपस्याद्वारा इन्होंने ब्रह्मलोकपर विजय प्राप्त कर ली थी । देवराज इन्द्र इन्हें सत्कारपूर्वक ब्रह्मलोकतक पहुँचानेके निमित्त आये । इन्होंने देखा कि पृथ्वीसे कुछ ऊपर आकाशमें देवराजका रथ खड़ा है । बहुत - से देवताओंसे धिरे वे उसमें विराजमान हैं । सूर्य एवं अग्निके समान उनकी शोभा है । देवाङ्गनाएँ उनकी स्वर्ण - दण्डिकायुक्त चवरोंसे सेवा कर रही है । उनके मस्तकपर श्वेत छत्र शोभायमान है । गन्धर्व, सिद्ध एवं अनेक ब्रह्मांष उनकी अनेक उत्तमोत्तम वचनोंद्वारा स्तुति कर रहे हैं । ये इनके साथ ब्रह्मलोककी यात्राके लिये तैयार ही थे कि इन्हें पता चला कि राजीवलोचन कोशलकिशोर श्रीराघवेन्द्र रामभद्र भ्राता लक्ष्मण एवं भगवती श्रीसीताजीसहित इनके आश्रमकी ओर पधार रहे हैं । ज्यों - ही भगवान् श्रीरामके आगमनका शुभ समाचार इनके कानोंमें पहुँचा, त्यों - ही तपःपूत अन्तःकरणमें भक्तिका सञ्चार हो गया । वे मन - ही - मन सोचने लगे - ' अहो ! लौकिक और वैदिक समस्त धर्मोंका पालन जिन भगवानके चरणकमलोंकी प्राप्तिके लिये ही किया जाता है - वे ही भगवान् स्वयं जब मेरे आश्रमकी ओर पधार रहे हैं, तब उन्हें छोड़कर ब्रह्मलोकको जाना तो सर्वथा मूर्खता है । ब्रह्मलोकके प्रधान देवता तो मेरे यहाँ ही आ रहे हैं - तब वहाँ जाना निष्पयोजनीय ही है । अतः मन - ही - मन यह निश्चय कर कि ' तपस्याके प्रभावसे मैंने जिन - जिन अक्षय लोकोंपर अधिकार प्राप्त किया है, वे सब मैं भगवानके चरणोंमें समर्पित करता हूँ ' इन्होंने देवराज इन्द्रको विदा कर दिया ।
ऋषि शरभङ्गजीके अन्तःकरणमें प्रेमजनित विरह - भावका उदय हो गया -
' चितवत पंथ रहेउँ दिन राती ।'
वे भगवान् श्रीरामकी अल्प - कालकी प्रतीक्षाको भी युग - युगके समान समझने लगे । ' भगवान् श्रीरामके सम्मुख ही मैं इस नश्चर शरीरका त्याग करुँगा ' - इस दृढ़ सङ्कल्पसे वे भगवान् रामकी क्षण - क्षण प्रतीक्षा करने लगे ।
कमल - दल - लोचन श्यामसुन्दर भगवान् श्रीराम इनके आश्रमपर पधारे ही । सीता - लक्ष्मणसहित रघुनन्दनको मुनिवरने देखा । उनका कण्ठ गद्गद हो गया । वे कहने लगे -
चितवत पंथ रहेलँ दिन राती । अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती ॥
नाथ सकल साधन मैं हीना । कीन्ही कृपा जानि जनु दीना ॥
भगवान् श्रीरामको देखते ही प्रेमवश इनके लोचन भगवानके रुप - सुधा - मकरन्दका साग्रह पान करने लगे । इनके नेत्रोंके सम्मुख तो वे थे ही - अपने प्रेमसे इन्होंने उन्हें अपने अन्तः करणमें भी बैठा लिया -
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्यान ।
मम हियँ बसहु निरंतर सगुन रुप श्रीराम ॥
भगवानको अपने अन्तःकरणमें बैठाकर मुनि योगाग्निसे अपने शरीरको जलानेके लिये तत्पर हो गये । योगाग्निने इनके रोम, केश, चमड़ी, हड्डी, मांस और रक्त - समीको जलाकर भस्म कर डाला । अपने नश्वर शरीरको नष्टकर वे अग्निके समान तेजोमय शरीरसे उत्पन्न हुए । परम तेजस्वी कुमारके रुपमें वे अग्नियों, महात्मा ऋषियों और देवताओंके भी लोकोंको लाँधकर दिव्य घामको चले गये ।