श्रीअभिनवगुप्ताचार्यका जन्म काश्मीरमें हुआ था । उन्होंने अपने गीताभाष्यमें अपने वंशका परिचय दिया है ।
वररुचि - जैसे विद्वान् और ज्ञानी कात्यायन उनके पूर्वज थे । उनके वंशमें स्थिरबुद्धि और अत्यन्त विद्वान् सौचुकने जन्म ग्रहण किया था । सौचुकके पुत्र महात्मा श्रीभूतिराज थे । भूतिराजकी प्रतिभासे समस्त लोक आलोकित हो उठा था । उन्हीके चरणारविन्दके मधुप अभिनवगुप्त थे । वे स्वयं भी बहुत बड़े विद्वान् और भगवद्भक्त थे । उन्होंने भगवानका साक्षात्कार किया था और इसी कारण गीताका अर्थ लिखनेमें समर्थ हुए थे । उन्होंने यह भी लिखा है कि ब्राह्मणोंके अनुरोधसे मैंने गीताभाष्य लिखा । गीताभाष्यके अन्तमें उन्होंने शिवके साथ अपनी अभिन्नता प्रकट की हैं । वे लिखते हैं --
अभिनवरुपा शक्तिस्तदगुप्तो यो महेश्वरो देवः ।
तदुभयथात्मकरुपमभिनवगुप्तं शिवं वन्दे ॥
अभिनवगुप्ताचार्यके गीताभाष्यका नाम ' गीतार्थसंग्रह ' है । इसके अतिरिक्त उन्होंने शिवसूत्रकी व्याख्या भी लिखी थी; परंतु यह कहींसे प्रकाशित हुई या नहीं, मालूम नहीं ।