आषाढ़ शुक्लपक्ष व्रत - वायुधारिणी पूर्णिमा

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


वायुधारिणी पूर्णिमा

( ज्योतीःशास्त्र ) -

आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमाको सूर्यास्तके समय गणेशादिका पूजन करके सुदीर्घ शंकुके अग्रभागमें मन्दवायुके संचालनमात्रसे संचालित होनेवाले तूलिकापुष्प ( रुईके फोये ) को लटकाकर सीधा खड़ा करे और जिस दिशाकी हवा हो उसके अनुसार १ शुभाशुभ निश्चित करे । अक्षय - तृतीयाके अनुसार इस पूर्णिमाको भी कलशस्थापन करके अनेक प्रकारकी वनौषधि, धान्य, प्रख्यात देश और उनके अधिपति एवं विख्यात व्यक्तियोंके नाम पृथक् - पृथक् तौलकर कपड़ेकी अलग - अलग पोटलियोंमें बाँधकर कलशके समीप स्थापन करते हैं और दूसरे दिन उसी प्रकार फिर तौलकरे उनके न्य़ुन, सम और आधिक होनेपर अन्नादिके मँहगे, सस्ते एवं देशाविशेष और व्यक्तियोंके हास, यथावत् और वृद्धि होनेका ज्ञान प्राप्त करते हैं ।

आषाढ्यां भास्करास्ते सुरपतिनिलये वाति वाते सुवृष्टिः

सस्यार्धं सम्प्रकुर्याद यदि दहनदिशो मन्दवृष्टिर्यमेन ।

नैऋत्यामन्ननाशो वरुणदिशि जलं वायुकोणे प्रवायुः

कौवेर्यां सस्यपूर्णा सकलवसुमती तद्वदीशानवायौ ॥ ( ज्योतिःशास्त्र )

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Last Updated : January 16, 2012

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