वैशाखी व्रत ( भविष्य०, आदित्य०, जाबालि० ) -
वैशाखी पूर्णिमा बड़ी पवित्र तिथि है । इस दिन दान - धर्मादिके अनेक कार्य किये जाते हैं । अतः यह उदयसे उदयपर्यन्त हो तो विशेष श्रेष्ठ होती है । अन्यथा कार्यानुसार लेनी चाहिये । इस दिन
( १ ) धर्मराजके निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान देनेसे गोदानके समान फल होता है ।
( २ ) यदि पाँच या स्रात ब्राह्मणोंको शर्करासहित तिल दे तो सब पापोंका क्षय हो जाता है ।
( ३ ) इस दिन शुद्ध भूमिपर तिल फैलाकर उसपर पूँछ और सींगोंसहित काले मृगका चर्म बिछावे और उसे सब प्रकारके वस्त्रोंसहित दान करे तो अनन्त फल होता है ।
( ४ ) यदि तिलोंके जलसे स्त्रान करके घी, चीनी और तिलोंसे भरा हुआ पात्र विष्णुभगवानको निवेदन करे और उन्हींसे अग्निमें आहुति दे अथवा तिल और शहदका दान करे, तिलके तेलके दीपक जलावे, जल और तिलोंका तर्पण करे अथवा गङ्गादिमें स्त्रान करे तो सब पापोंसे निवृत्त होता है ।
( ५ ) यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चन्द्रमा अथवा सत्यनारायणका व्रत करे तो सब प्रकारके सुख, सम्पदा और श्रेयकी प्राप्ति होती है ।