मन तुम मलिनता तजि देहु ।
सरन गहु गोबिंदकी अब करत कासों नेहु ॥
कौन अपने आप काके, परे माया सेहु ।
आज दिन लौं कहा पायो, कहा पैहो खेहु ॥
बिपिन-बृंदा बास करु जो, सब सुखनिको गेहु ।
नाम मुखमें ध्यान हियमें, नैन दरसन लेहु ॥
छाँड़ि कपट कलंग जगमें सार साँचौ एहु ।
जुगलप्रिया बन चित्त चातक, स्याम स्वाती येहु ॥