भजन - प्रीतम रूप दिखाय लुभावै ।...
हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।
प्रीतम रूप दिखाय लुभावै । यातें जियरा अति अकुलावै ॥
जो कीजत सो तौ भल कीजत, अब काहे तरसावै ।
सीखी कहाँ निठुरता एती, दीपक पीर न लावै ॥
गिरि गिरि मरत पतंग जोतिमें, ऐसेहु खेल सुहावै ।
सुन लीजै बेदरद मोहना, जिन अब मोहि सतावै ॥
हमरी हाय बुरी या जगमें, जिन बिरहाग जरावै ।
जुगलप्रिया मिलिबो अनमिलिबो. एकहि भाँति लखावै ॥
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Last Updated : December 25, 2007
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