नाथ अनाथकी सब जानै ॥
ठाढ़ी द्वार पुकार करति हौं, स्त्रवन सुनत नहिं कहा रिसानै ।
की बहु खोट जानि जिय मेरी, क कछु स्वारथ हित अरगानै ॥
दीन बंधु मनसाके दाता, गुन औगुन कैधों मन आनै ।
आप एक हम पतित अनेकन, यही देखि का मन सकुचानै ॥
झूठौं अपनो मान धरायो, समझ रहे हैं हमहि सयानै ।
तजो टेक मनमोहन मेरे, जुगलप्रिया दीजै रस दानै ॥