साधो निंदक मित्र हमारा ।
निंदककों निकटे ही राखो, होन न देउँ नियारा ॥
पाछे निंदा करि अघ धोवै, सुनि मन मिटै बिकारा ।
जैसे सोना तापि अगिनमें, निरमल करै सोनार ॥
घन अहरन कसि हीरा निबटै, कीमत लच्छ हजारा ।
ऐसे जाँचत दुष्ट संतकूँ, करन जगत उँजियारा ॥
जोग-जग्य-जप पाप कटन हितु करै सकल संसारा ।
बिन करनी मम करम कठिन सब, मेटै निंदक प्यारा ॥
सुखी रहो निंदक जग माहीं रोग न हो तन सारा ।
हमरी निंदा करनेवाला, उतरै भवनिधि पारा ॥
निंदकके चरनोंकी अस्तुति, भाखौं बारंबारा ।
चरनदास कहैं सुनियो साधो, निंदक साधक भारा ॥