हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|चरनदास|भजन संग्रह १| टुक रंगमहलमें आव कि निरगु... भजन संग्रह १ सुन सुरत रँगीली हो कि हरि... टुक रंगमहलमें आव कि निरगु... टुक निरगुन छैला सूँ , कि ... तरसौ मेरे नैन हेली , राम ... मो बिरहिनकी बात हेली , बि... प्रेमनगरके माहिं होरी होय... समझ रस कोइक पावै हो । गु... वह पुरुषोत्तम मेरा प्यार ... झूलत कोइ कोइ संत लगन हिंड... साधो निंदक मित्र हमारा । ... जिन्हैं हरिभगति पियारी हो... गुरु हमरे प्रेम पियायौ हो... अब घर पाया हो मोहन प्यारा... कोइ दिन जीवै तौ कर गुजरान... भजन - टुक रंगमहलमें आव कि निरगु... हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है। Tags : bhajancharandasचरनदासभजन भजन Translation - भाषांतर टुक रंगमहलमें आव कि निरगुन सेज बिछी । जहँ पवन गवन नहिं होय जहाँ जा सुरति बसी ॥१॥ जहँ त्रैगुन बिन निरबान जहँ नहिं सूर-ससी । जहँ हिल-मिलकै सुख मान मुकतिकी होय हँसी ॥२॥ जहँ पिय-प्यारी मिलि एक कि आसा दुईनसी । जहँ चरनदास गलतान कि सोभा अधिक लसी ॥३॥ N/A References : N/A Last Updated : December 20, 2007 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP