सुन सुरत रँगीली हो कि हरि-सा यार करौ ॥टेक॥
जब छूटै बिघन बिकार कि भौ जल तुरत तरौ ॥१॥
तुम त्रैगुन छैल बिसारि गगनमें ध्यान धरौ ॥२॥
रस अमिरत पीवो हो कि बिषया सकल हरौ ॥३॥
करि सील-संतोष सिंगार छिमाकी माँग भरौ ॥४॥
अब पाँचों तजि लगवार अमर घर पुरुष बरौ ॥५॥
कहैं चरनदास गुरु देखि पियाके पाँव परौ ॥६॥