तरसौ मेरे नैन हेली, राम मिलन कब होयेगा ॥टेक॥
पिय दरसन बिन क्यों जिऊँ री हेली कैसे पाऊँ चैन ।
तीर्थ बर्त बहुतै किये री चित दै सुने पुरान ॥१॥
बाट निहारत ही रहूँ री हेली, सुधि नहिं लीनी आय ।
यह जोबन यों ही चलौ री चालौ जनम सिराय ॥२॥
बिरहा दल साजे रहे री हेली, छिन-छिनमें दुख देहि ।
मन लालनके बस परौ, भई भाक-सी देहि ॥३॥
गुरु सुकदेव कृपा करौ जी हेली, दीजै बिरह छुटाय ।
चरनदास पियसू मिले सरन तुम्हारी धाय ॥४॥