हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|ठाकुर प्रसाद| प्रथम स्कन्ध ठाकुर प्रसाद भागवत का उद्देश्य प्रथम स्कन्ध सूची द्वितीय स्कन्ध सूची तृतीय स्कन्ध सूची चतुर्थ स्कन्ध सूची पञ्चम स्कन्ध सूची षष्ठ स्कन्ध सूची सप्तम स्कन्ध सूची अष्टम स्कन्ध सूची नवम स्कन्ध सूची दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध सूची द्वादश स्कन्ध सूची प्रथम स्कन्ध द्वितीय स्कन्ध तृतीय स्कन्ध चतुर्थ स्कन्ध पञ्चम स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध सप्तम स्कन्ध अष्टम स्कन्ध नवम स्कन्ध दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध) दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध) एकादश स्कन्ध द्वादश स्कन्ध ठाकुर प्रसाद - प्रथम स्कन्ध ठाकुर प्रसाद म्हणजे समाजाला केलेला उपदेश. Tags : bookthakur prasadठाकुर प्रसादहिन्दी प्रथम स्कन्ध Translation - भाषांतर मंगलाचरणजन्म द्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चर्थेष्वभिज्ञ: स्वरात् तेने ब्रम्हा ह्रदा य प्रादिकवये मुहयंति यत्सूरय: ।तेजोवारिमिदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि ॥एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति ।त्रयी साख्यं योग: पशुपतिमतं वैष्णवमिति प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमद: पथ्यमिति च ।रुचीनों वैचित्रयाद्दजुकुटिलनानापथजुषां नृणमेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।गीताजी में भगवान् कहते हैं :---दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:धर्म: प्रोज्फितक्तैवोऽत्र परमो निर्मत्सराणं सतां ।वैद्यं वास्तवमत्र वस्तुशिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ॥श्री राम हनुमानजी से कहते हैं :---प्रति उपकार करु का तोरा ।सनमुख होइ न सकत मन मोरा ॥गीता में हा है :---देवान्देवजयो यातिं मद्भक्ता यातिं मामपि ।संसारकूपपतितोत्तरणवलम्बं गेहंजुषामपि मनस्युदियात् सदा न: ।श्रीकृष्ण का सुख ही आना सुख है, ऐसा गोपियाँ मानती थीं ।दूसरों के सुख में सुख का अनुभव करना ही सच्चे प्रेम का लक्षण है ।शाण्डिल्य मुनि ने अपने भक्ति सूत्र में लिखा है -तत्सुखे सुखित्वम् प्रेमलक्षणम् ।गीता में कहा गया हैं :---क्षेत्रज्ञं चापि माँ विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत ।शतं विहाय भोक्तव्यं सहस्रं स्नानं आचरेत् ।लक्षं विहाय दातव्यं कोटि त्यक्त्वा हरिं भजेत् ॥स्वाद भोजन में नहीं है, भूख के कारण ही है ।मम त्वेता~म वाणी गुणकथनपुण्येन भवत: ।पुनामोत्यर्थेऽरिमन् पुरमथनबुद्धिर्व्यवसिता ॥स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे ।अहैतुक्यप्रतिहता ययाऽत्मा सम्प्रसिदति ॥प्रेमगली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं ।गोपी सब में श्रीकृष्ण को देखकर जीव भाव भूल गई थीं ।लाली मेरे लालकी, जित देखौं तित लाल ।लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल ॥नमो भगवते तुभ्यं वासुदेवाय धीमहि ।प्रद्युम्नायानिरुद्धाय नम: संकर्षणाय च ॥जन्म दु:खं जरा दु:खं जाया दुखं पुन: पुन: ।अन्तकालं महदु:खं तस्मात् जागृहि जागृहि ॥नारायण: पंकजलोचन: प्रभु: केयूरहारं परिशोभमान: ।भक्त्या युतो येन सुपूजितो नहि वृथा गतं तस्य नरस्य जीवनम् ॥श्रीवत्सलक्ष्मीकृतह्रत्प्रदेशस्तार्क्ष्मध्वजश्चक्रधर: परात्मा ।न सेवितो येन क्षणं मुकुंदो वृथा गतं तस्य नरस्य जीवनम् ।यतो वाची निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह ।आनंदं ब्राम्हाणे विद्वान न बिभेति कदाचन ॥बर्हापाड नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं बिभ्रद्वास कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् ।रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृदै: वृंदारण्यं स्वपदरमणं प्राविंशद् गीतकीर्ति: ॥अहो बकी यं स्तनकालकूटं जिघान्सयापायदप्यसाध्वी ।लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालुं शरणं ब्रजेम ॥आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे ।कुर्वन्त्यहैतुकी भक्तिमित्थम्भूतग्णो हरि: ॥नैवातिदु:सहा क्षुन्मां त्यक्तोदपपि बाधते ।पिबतं त्वन्मुखाम्भोजच्युतं हरिकथामृतम् ॥नम: पंकजनाभाय नम: पंकजमालिने ।नम: पंकजनेत्राय नमस्ते पंकजाङघ्रये ॥सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है,सारी की ही नारी है कि नारी वी ही सारी है ।विपद: सन्तु न: शाश्वत्तत्र तत्र जगदगुरो ।भवतो दर्शन यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥सुख के माथे सिल परौ । हरी ह्रदय से पीर ।बलिहारो वा दु:ख की जो पल पल नाम जपाय ॥कह हनुमन्त विपत्ति प्रभु सोई ।जब तब सुमिरन भजन न होई ॥हे कृष्ण ! द्वारिकावासिन ! क्वासि यादवनन्दन ।कौरवे: परिभूतां मां किं न जानासि केशव ॥भीष्मजी स्तुति करते हैं :---त्रिभुवनकमन तमालवर्ण रविकरगौरवराम्बरं दधान ।वपुरलककुलावृतानाब्ज विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ॥प्रभु की शरण ग्रहण करने वाले का ही मरण सुधरता है ।स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञामृतमधिकर्तुम् ।जब तुम आये जग में तो वह हँसा, तुम रोए ।ऐसी करनी कर चलो, तुम हँसो, जग रोए ॥जन्म जन्म मुनि जतन कराहीं, अंत राम कहि आवत नाहीं ।आरोग्यं भास्करात इच्छेत् मोक्षं इच्छेत जनार्दनात् ।उत्तमा सहजावस्था, मध्यमा ध्यानधारणा ।आधमा मूर्तिपूजा च, तीर्थयात्राऽधमाऽधमा ॥आम्हीं जातो आमुच्या गाँवा, आमचा राम - राम ध्यावा ।जन्म - जन्म मुनि जतन कराहीं, अंत राम कहि आवत नाहीं ।आरोग्यं भास्करात इच्छेत मोक्षं इच्छेत जनार्दनात् ।उत्तमा सहजावस्था, मध्यमा ध्यानधारणा ।अधमा मूर्तिपूजा च, तीर्थयात्राऽधमाऽधमा ॥आम्हीं जातो आमुच्या गाँवा,आमचा राम - राम ध्यावा ।जन्म - जन्म मुनि जतन कराहीं,अंत राम कहि आवत नाहीं ।हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥ N/A References : N/A Last Updated : November 11, 2016 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP