ठाकुर प्रसाद - भागवत का उद्देश्य
ठाकुर प्रसाद म्हणजे समाजाला केलेला उपदेश.
भागवत का उद्देश्य और उसका माहात्म्य
सच्चिदानंदरूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे ।
तापत्रयविनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम: ॥।
वंदे नदब्रजस्त्रीरणं पादरेणुमभीक्ष्णश: ।
तासां हरिकथोदगीतं पुनाति भुवनत्रयम् ॥
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम: ।
ठेवीले अनंते तैसेची रहावे ।
चिती असो द्यावे समाधान ॥
भलुं थयुं भांगी जंजाल ।
सुखे भजीशुं श्री जोपाल ॥
उद्धरेदात्म नात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्य: पंथा विद्यतेष्यनाय ।
विवेक ही आत्मा का पुत्र है ।
बिनु सत्संग विवेक न होई ।
गीता मे कहा गया है :---
भुंजते ते त्वघ पापा ये पचन्त्यात्मकारणत् ।
देहेऽस्थिमोंसरुधिरेऽभिमतं त्यज त्वं जायासुतादिषु सदा ममतों विमुं च ।
पश्यानिशं जगदिदं क्षणभंगनिष्ठं वैराग्यरागरसिको भव भक्तिनिष्ठा: ॥
श्रवण, मनन निदिध्यासन से ज्ञान दृढ ह्ता हे ।
अद्दढ च हतं ज्ञानं प्रमादेन हतं श्रुतम् ।
संदिग्धो हि हतो मंत्री व्यग्रचित्तो हतो जप: ॥
प्रत्येक नर-नारी को भगवदभाव से देखो ।
सूतजी सावधान करते हैं ।
अथातो ब्रम्हाजिज्ञासा
संयम का पालन करोगे, तप करोगे तो ईश्वर मिलेंगे ।
आत्मा का तो धर्म प्रभु के सम्मुख जाना ।
॥ हरये नम: हरये नम: हरये नम: ॥
संयम का पालन करोगे, तप करोगे तो ईश्वर मिलेंगे ।
आत्मा का तो धर्म है प्रभु के सम्मुख जाना ।
॥ हरये नम: हरये नम: हरये नम: ॥
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Last Updated : November 11, 2016
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