ठाकुर प्रसाद - चतुर्थ स्कन्ध

ठाकुर प्रसाद म्हणजे समाजाला केलेला उपदेश.


दृढ श्रद्ध भक्ति से, दृढ प्रेम से जड भी चेतन बनता है ।
जीवमात्र के साथ मौत्री रखो ।

जगत: पितरो वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥

क्रतुभ्रंषस्त्वत्त: कृतुफलविधानव्यसनिनो ध्रवंकर्तु: श्रद्धाविधुरमभिचाराय हि मखा: ।

नमस्कार: प्रियो भानु: जलधाराप्रियो शिव: ।
अलंकारप्रियो कृष्ण: ब्रम्हाणे मोदकप्रिय: ॥

गीता जी में तप की व्याख्या करते हुए कहा गया है ।
भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ।

ध्रुवाख्यान

स्वामी शंकराचार्य इसीलिए तो आज्ञा देते हैं कि :---
स्वाद्वन्नं न तु याच्यतां विधिवसात्प्राप्तेन संतुष्यताम् ।

वये पोर ते थोर हौनी गेले,  वये थोर ते चोर हौनी मेले ।

आराधयाधोक्षोजपादपद्‌म यदीच्छसेऽध्यासनमुतमो यथा ।

अनन्यभावे निजधर्मभाविते ममस्यवस्थाप्य भजस्व पुरुषम् ॥

दु:शीलो मातृदोषेन, पितृदोषेन मूर्खता ।
कार्पण्यं वंशदोषेन, श्रात्मदोषाद दरिद्रता ॥

ध्रुव का अटल निश्चय देखकर नारदजी ने कहा :---

धमार्थकाममोक्षाख्यं य इच्छेच्छये आत्मन: ।
एकमेव हरेस्तत्र कारणं पादसेवनम् ॥

तस्मात् गच्छ भद्रं ते यमुनायास्तटं शुभम् ।
पुण्यं मधुवनं यत्र सान्निध्यं नित्यदा हरे: ॥

स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है ।
दान करने से धन की शुद्धि होती है ।
ध्यान करने से मन की शुद्धि होती है ।

मैं तुम्हें एक मंत्र भी दे रहा हूँ ।
ॐ नम: भगवते वासुदेवाय ।

मासैरहं षङभिरमुष्य पादयोर्छायामुपेत्पापगत: ।

मधोर्वनं मर्त्यदिद्दक्षया गत: ।

योऽन्त: प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां संजीवयत्यखिलशक्तिधर: स्वधाम्ना ।
अन्यांश्च हस्तच्रणश्रवणत्वगादीन् प्राणन्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ॥

उपनिषद में भी कहा है :---
नायामत्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन ।
यमैवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा वृणुते तनू स्वाम् ॥

तुकाराम ने कहा है :---
आधीं केला सत्सङ्ग तुका झाला पाडुरङ्ग ।
त्याचे भजन राहिना मूळ स्वभाव जाईना ॥

रामचरितमानस में भी कहा गया है :---
पुत्रवती जुबती जग सोई ।
उघुबर भगत जासु सुत होई ॥

महाराज मनु कहते हैं :---
तितिक्षया करुणया मैत्र्या चार्खिलजंतुषु ।
समत्वेन च सर्वात्मा भगवान् संप्रसीदति ।
सम्प्रसन्ने भगवति पुरुष: प्राकृतैर्गुणै: ।
विमुक्तो जीवनिर्मुक्तो ब्रम्हानिर्वाणमृच्छति ॥

अस अभिमान जाइ जनि मोरे ।
मैं सेवक रघुपति पति मोरे ॥

जितने तारे गगन में, उतने शत्रु होयं ।
जा पै कृपा रघुनाथ की, बाल न बांका होय ॥

गृहेष्वाविशतां चापि पुंसां कुशलकर्मणम् ।
मद्वार्तायातयामानां न बन्धाय गृहा मता: ॥

कृते प्रतिकृतम् कुर्यात एष धर्म: सनातन: ।
यह है इन दोनो के अवतारों की भिन्नता ।

दयया सर्वभूतेषु संतुष्टया येन केन वा ।
सर्वेंन्द्रियोपशान्त्या च तुष्यत्याशु जनार्दन: ॥

हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥

अप्सरा मन में अभी तक बैठी हुई है ।
अब पूर्वचित्त अप्सरा की कथा सुनिये ।


Last Updated : November 11, 2016

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