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अष्टोत्तरशतनामभि: शिवार्चनम्

पूजा विधी - अष्टोत्तरशतनामभि: शिवार्चनम्

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


अष्टोत्तरशतनामभि : शिवार्चनम्

( शिव के १०८ नामों से पुष्प , अक्षत बिल्वपत्र आदि से शिव - पूजन करें । )

ॐ अस्य श्रीशिवाष्टोत्तरशतनाममन्त्रस्य नारायणऋषि : अनुष्टुप् छन्द : श्रीसदाशिवो देवता गौरी उमाशक्ति : श्रीसाम्बसदाशिवप्रीतये अष्टोत्तरशतनामभि : शिवपूजने विनियोग : ।

शान्ताकारं शिखररिशयनं नीलकण्ठं सुरेशं

विश्वाधारं स्फटिकसदृशं शुभ्रवर्ण शुभाङ्गम् ।

गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥

ॐ शिवाय नम : ॥१॥

ॐ महेश्वराय नम : ॥२॥

ॐ शम्भवे नम : ॥३॥

ॐ पिनाकिने नम : ॥४॥

ॐ शशिशेखराय नम : ॥५॥

ॐ वामदेवाय नम : ॥६॥

ॐ विरूपाक्षाय नम : ॥७॥

ॐ कपर्दिने नम : ॥८॥

ॐ नीललोहिताय नम : ॥९॥

ॐ शङ्कराय नम : ॥१०॥

ॐ शूलपाणये नम : ॥११॥

ॐ खट्‌वाङ्गिने नम : ॥१२॥

ॐ विष्णुवल्लभाय नम : ॥१३॥

ॐ शिपिविष्टाय नम : ॥१४॥

ॐ अम्बिकानाथाय नम : ॥१५॥

ॐ श्रीकण्ठाय नम : ॥१६॥

ॐ भक्तवत्सलाय नम : ॥१७॥

ॐ भवाय नम : ॥१८॥

ॐ शर्वाय नमः ॥१९॥

ॐ त्रिलोकीनाथाय नम : ॥२०॥

ॐ शितिकण्ठाय नम : ॥२१॥

ॐ शिवाप्रियाय नम : ॥२२॥

ॐ उग्राय नम : ॥२३॥

ॐ कपालिने नम : ॥२४॥

ॐ कामारये नम : ॥२५॥

ॐ अन्धकासुरसूदनाय नम : ॥२६॥

ॐ गंङ्गाधराय नम : ॥२७॥

ॐ ललाटाक्षाय नम : ॥२८॥

ॐ कालकालाय नम : ॥२९॥

ॐ कृपानिधये नम : ॥३०॥

ॐ भीमाय नम : ॥३१॥

ॐ परशुहस्ताय नम : ॥३२॥

ॐ मृगपाणये नम : ॥३३॥

ॐ जटाधराय नम : ॥३४॥

ॐ कैलासवासिने नम : ॥३५॥

ॐ कवचिने नम : ॥३६॥

ॐ कठोराय नम : ॥३७॥

ॐ त्रिपुरान्तकाय नम : ॥३८॥

ॐ वृषाङ्काय नम : ॥३९॥

ॐ वृषभारुढाय नम : ॥४०॥

ॐ भस्मोद्‌धूलितविग्रहाय नम : ॥४१॥

ॐ सामप्रियाय नम : ॥४२॥

ॐ स्वरमयाय नम : ॥४३॥

ॐ त्रिमूर्तये नम : ॥४४॥

ॐ अश्विनीश्वराय नम : ॥४५॥

ॐ सर्वज्ञाय नम : ॥४६॥

ॐ परमात्मने नम : ॥४७॥

ॐ सोमसूर्य्याग्नि लोचनाय नम : ॥४८॥

ॐ हविषे नम : ॥४९॥

ॐ यज्ञमयाय नम : ॥५०॥

ॐ पञ्चवक्त्राय नम : ॥५१॥

ॐ सदाशिवाय नम : ॥५२॥

ॐ विश्वेश्वराय नम : ॥५३॥

ॐ वीरभद्राय नमः ॥५४॥

ॐ गणनाथाय नम : ॥५५।

ॐ प्रजापतये नम : ॥५६॥

ॐ हिरण्यरेतसे नम : ॥५७॥

ॐ दुर्द्धर्षाय नम : ॥५८॥

ॐ गिरीशाय नम : ॥५९॥

ॐ गिरिशाय नम : ॥६०॥

ॐ अनघाय नम : ॥६१॥

ॐ भुजङ्गभूषणाय नम : ॥६२॥

ॐ भर्गाय नम : ॥६३॥

ॐ गिरिन्धवने नम : ॥६४॥

ॐ गिरिप्रियाय नम : ॥६५॥

ॐ अष्टमूर्त्तये नम : ॥६६॥

ॐ अनेकात्मने नम : ॥६७॥

ॐ सात्त्विकाय मन : ॥६८॥

ॐ शुभविग्रहाय नम : ॥६९॥

ॐ शाश्वताय नम : ॥७०॥

ॐ खण्डपरशवे नम : ॥७१॥

ॐ अजाय नम : ॥७२॥

ॐ पाशविमोचकाय नम : ॥७३॥

ॐ कृतिवाससे नम : ॥७४॥

ॐ पुरारातये नम : ॥७५॥

ॐ भगवते नम : ॥७६॥

ॐ प्रमथाधिपाय नम : ॥७७॥

ॐ मृत्युञ्जयाय नम : ॥७८॥

ॐ सूक्ष्मतनवे नम : ॥७९॥

ॐ जगद्‌व्यापिने नम : ॥८०॥

ॐ जगद्‌गुरवे नम : ॥८१॥

ॐ जनकाय नम : ॥८२॥

ॐ चारुविक्रमाय नम : ॥८३॥

ॐ रुद्राय नम ; ॥८४॥

ॐ भूतपतये नम : ॥८५॥

ॐ स्थावणे नम : ॥८६॥

ॐ अहिर्बुघ्न्याय नम : ॥८७॥

ॐ दिगम्बराय नम : ॥८८॥

ॐ मृडाय नम : ॥८९॥

ॐ पशुपतये नम : ॥९०॥

ॐ देवाय नम : ॥९१॥

ॐ महादेवाय नम : ॥९२॥

ॐ अव्ययाय नम : ॥९३॥

ॐ हरये नम : ॥९४॥

ॐ पुष्पदन्तभिदे नम : ॥९५॥

ॐ भगनेत्रभिदे नम : ॥९६॥

ॐ अपवर्गप्रदाय नम : ॥९७॥

ॐ अव्यग्राय नम : ॥९८॥

ॐ अव्यक्त्याय नम : ॥९९॥

ॐ अनन्ताय नम : ॥१००॥

ॐ दक्षाध्वरहराय नम : ॥१०१॥

ॐ सहस्त्राक्षाय नम : ॥१०२॥

ॐ तारकाय नम : ॥१०३॥

ॐ हराय नम : ॥१०४॥

ॐ सहस्त्रपदे नम : ॥१०५॥

श्री श्रीपरमेश्वराय नम : ॥१०६॥

ॐ व्रताधिपाय नम : ॥१०७॥

ॐ जगते नम : ॥१०८॥

धूप :

ॐ या ते हेतिर्म्मीढुष्ट्टमहस्ते बभूव ते धनु : ।

तयास्मान्न्विश्श्वतस्त्वमयक्ष्मया परिभुज : ॥

वनस्पतिरसोद्‌भूतो गन्धाढयो गन्ध उत्तम : ।

आघ्रेय : सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम , धूपमाघ्रापयामि ।

( धूप की ओर अक्षत छोड दें । )

दीपम्

ॐ परि ये धन्न्वनो हेतिरस्म्मान् व्वृणक्तु व्विश्श्वत : ।

अथो य ऽइषुधिस्तवारे ऽअस्म्मन्निधेहि तम् ॥

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।

त्राहि मां निरयाद् घोराद्दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम :, दीपं दर्शयामि । हस्तप्रक्षालनम् ।

( दीपक की ओर अक्षत छोडे दें । )

नैवेद्यम्

ॐ अवतत्त्य धनुष्ट्‌व सहस्त्राक्ष शतेषुधे ।

निशीर्य्य शल्यानां म्मुखा शिवो न : सुमना भव ॥

नैवेद्यं गृह्यताम देव भक्ति मे ह्यचलां कुरु ।

ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गतिम् ॥

शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।

आहारो भक्ष्येभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यम् ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम :, नैवेद्यं निवेदयामि ।

नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

( नैवेद्य निवेदन करके जल छोडें । )

नैवेद्य को पवित्र जल से अभ्युक्षण कर , गन्ध और पुष्प से आच्छादित कर तथा धेनुमुद्रा से अमृतीकरण कर योनिमुद्रा दिखायें और घण्टा बजा दें पश्चात् ग्रासमुद्रा को दिखाकर -

ॐ प्राणाय स्वाहा ।

ॐ अपानाय स्वाहा ।

ॐ व्यानाय स्वाहा ।

ॐ उदानाय स्वाहा ।

ॐ समानाय स्वाहा ।

इत्यादि के द्वारा मुद्राओं का प्रदर्शन करें । और बीच - बीच में आचमनीय जल को समर्पित करें । उत्तरापोशनार्थ पुन : नैवेद्य निवेदन करें । हस्तप्रक्षालनार्थ जल समर्पित करें । पुन : आचमनीय जल को समर्पित करें ।

ऋतुफलानि

ॐ या : फलिनीर्य्या ऽअफला ऽअपुष्पायाच्च पुष्पिणी : ।

बृहस्पतिप्प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व हस : ॥

नानाविधानि दिव्यानि मधुराणि फलानि वै ॥

भक्त्यार्पितानि सर्वाणि गृहाण परमेश्वर ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम : ऋतुफलानि समर्पयामि ।

( फल निवेदन करें । )

धत्तूरफलानि

ॐ कार्षिरसि समुद्‌द्रस्य त्त्वा क्षित्या ऽउन्नयामि ।

समापो ऽअद्धिरग्मत समोषधीभिरोषधी : ॥

धीरधैर्यपरीक्षार्थं धारितं परमेष्ठिना ।

धत्तूरं कण्टकाकीर्णं गृहाण परमेश्वर ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम :, धत्तूरफलं समर्पयामि ।

( धत्तूरफल चढायें । ) ताम्बूलम् ( सुपारी , इलायची और लवङ्ग के सहित )

ॐ नमस्त ऽआयुधायानातताय , धृष्णवे ।

उभाब्भ्यामुत ते नमो बाहुब्भ्यां तव धन्न्वने ॥

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।

एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम :, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि ।

( पान चढायें । )

दक्षिणा

ॐ मा नो महान्तमुत मा नो ऽअर्ब्भकं मा न ऽउक्षन्तमुत मा न ऽउक्षितम् । मा नो व्वधी : पितरं मोत मातरं मा न : प्प्रियास्तन्वो रुद्‌द्र्रीरिष : ॥

दक्षिणा स्वर्णसहिता यथाशक्ति समर्पिता ।

अनन्तफलदामेनां गृहाण परमेश्वर ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम :, दक्षिणां समर्पयामि ।

( दक्षिणा चढायें । )

साक्षतजलेन तर्पणं कार्य्यम्

ॐ भवं देवं तर्पयामि ॥१॥

ॐ शर्वं देवं तर्पयामि ॥२॥

ॐ ईशानं देवं तर्पयामि ॥३॥

ॐ पशुपतिं देव तर्पयामि ॥४॥

ॐ उग्रं देवं तर्पयामि ॥५॥

ॐ रुद्रं देवं तर्पयामि ॥६॥

ॐ भीमं देवं तर्पयामि ॥७॥

ॐ महान्तं देवं तर्पयामि ॥८॥

ॐ भवस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥१॥

शर्वस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥२॥

ॐ ईशानस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥३॥

ॐ पशुपतेर्देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥४॥

ॐ उग्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥५॥

ॐ रुद्रस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥६॥

ॐ भीमस्य देवस्य पत्नीं तर्पयामि ॥७॥

ॐ महतो देवस्य पत्नीं तर्पयामि । एवं तर्पणं कृत्वा आरार्तिकं कुर्यात् ।

नीराजनम्

ॐ ये देवासो दिवेयकादश स्थ पृथिव्यामध्येकादश स्थ ।

अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम् ॥१॥

ॐ इद हवि : प्प्रजननं मे ऽअस्तु दशवीर सर्व्वगण स्वस्तये ।

आत्मसनि प्प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि । अग्नि : प्रजां बहुलां में करोत्वन्नं पयो रेतो ऽअस्मासु धत्त ॥२॥

ॐ आ रात्रि पार्थिव रज : पितुरप्प्रायि धामभि : ।

दिव : सदा सि बृहती व्वितिष्ठ्ठस ऽआ त्त्वेषं व्वर्त्तते तम : ॥३॥

ॐ अग्निर्द्देवता व्वातो देवता सूर्य्यो देवता चन्द्रमा देवता व्वसवो देवता रुद्‌द्रा देवतादित्या देवता मरुतो देवता व्विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिद्देवतेन्द्रो देवता व्वरुणो देवता ॥४॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदावसन्तं ह्रदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि ।

ॐ जय शिव ओंकारा , जय शिव ओंकारा ।

ब्र्‌हमा विष्णु सदाशिव अर्द्धाङ्गी धारा ॥१॥

ॐ हर हर हर महादेव ॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजै ।

हंसासन गरुङासन वृषवाहन साजै ॥२॥ टेक ॥

दो भुज चारु चतुर्भुज दशभुज अति सोहै ।

तीनों रूप निरखता त्रिभुवन - जन मोहै ॥३॥ टेक ॥

अक्षमाला वनमाला रुण्डमाला धारी ।

चन्दन मृगमद चन्दा भाले शुभकारी ॥४॥ टेक ॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अङ्गे ।

सनकादिक प्रभुतादिक भूतादिक सङ्गे ॥५॥ टेक ॥

कर मध्ये सुकमण्डलु चक्रत्रिशूल धरता ।

जगकर्त्ता जगभर्त्ता जगपालनकर्त्ता ॥६॥ टेक ॥

ब्र्‌हमा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर ॐ मध्ये ये तीनों एका ॥७॥ टेक ॥

काशी में विश्वनाथ विराजै नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठ दर्शन पावै महिमा अति भारी ॥८॥ टेका ॥

त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावै ।

भनत शिवानन्द स्वामी वाञ्छित फल पावै ॥९॥

ॐ हर हर हर महादेव ।

मन्त्रपुष्पाञ्जलि

ॐ मा नस्तोके तनये मा न ऽआयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिष : । मा नो व्वीरान् रुद्‌द्र भामिनो व्वाधीर्हविष्मन्त : सदमित्त्वा हवामहे ॥

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्म्माणि प्प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमान : सचन्त यत्र पूर्वे साध्या : सन्ति देवा : ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने । नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे । स मे कामान् कामकामाय मह्यम् । कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु । कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम : ॥ ॐ स्वस्ति । साम्राज्यं भोज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ‌यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् , सार्वभौम : सार्वायुष आन्तादापरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकाराडिति ॥ तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत : परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे । आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा : सभासद इति । ॐ विश्वतश्चक्षुरुत व्विश्वतो मुखो विश्वतो बाहुरूत विश्वतस्पात् । सम्बाहुव्भ्यां धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देवऽएक : ॥

जानामि पूजनमहं नहि शास्त्रसिद्धं , शक्तिस्तु ते परिचिता मम सर्वतश्च ।

पुष्पाञ्जलिर्भगवतश्चरणाब्जयोस्ते , सन्दीयते , परिगृहाण विसृज्य दोषान् ॥

श्री साम्बसदाशिवाय नम :, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।

( पुष्पाञ्जलि दें । )

शिवगायत्री

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि ।

तन्नो रुद्र : प्रचोदयात् ॥

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालाङ्किशेखराय ।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम : शिवायै च नम : शिवाय ॥

प्रदक्षिणा

( शिव की अर्द्ध प्रदक्षिणा होती है । )

ॐ ये तीर्थानि प्प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिण : ।

तोष सहस्त्रयोजनेव धन्न्वानि , तन्न्मसि ॥

ॐ सप्तास्यासन् परिधयस्त्रि : सप्त समिध : कृता : ।

देवा यद्यज्ञं तन्न्वाना ऽअबध्नन् पुरुषं पशुम् ॥

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणपदे ॥

( प्रदक्षिणा करें । )

प्रणाम

ॐ नम : शम्भवाय च मयो भवाय च नम : शङ्कराय च मयस्क्कराय च नम : शिवाय च शिवतराय च ॥

वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं

वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।

वन्दे सूर्य - शशाङ्क - वाह्विनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं

वन्दे भक्तजनाश्रयञ्च वरदं वन्दे - शिवं शङ्करम् ॥१॥

वन्दे महेशं सुरसिद्धसेवितं भक्तै : सदा पूजितपादपद्‌मम् ।

ब्रह्मेन्द्रविष्णुप्रमुखैश्च वन्दितं ध्यायेत्सदा कामदुधं प्रसन्नम् ॥२॥

शान्तं पद्मासनस्थं शशिधरमुकुटं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं

शूलं वज्रं च खड्‌गं परशुमभयदं दक्षिणाङ्गे वहन्तम् ।

नागं पाशं च घण्टां डमरुकसहितं साङ्कुशं वामभागे

नानालङ्कारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि ॥३॥

श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचा : सहचरा -

श्चिताभस्मालेप : स्त्रगपि नृकरोटीपरिकर : ।

अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं

तथापि स्मर्तृणां वरद परमं मङ्गलमसि ॥४॥

त्रिनेत्राय नमस्तुभ्यं उमादेहार्धधारिणे ।

त्रिशूलधारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम : ॥५॥

गङ्गाधर नमस्तुभ्यं वृषध्वज नमोऽस्तु ते ।

आशुतोष नमस्तुभ्यं भूयो भूयो नमो नम : ॥६॥

( नमन करें । )

क्षमा - प्रार्थना

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।

यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥१॥

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥२॥

पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसम्भव : ।

त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव ॥३॥

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।

दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ॥४॥

( क्षमा याचना करें । )

त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव , त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥५॥

अनेक यथाशक्तिकृतेन पूजनेन श्रीसाम्बसदाशिव : प्रीयतां न मम ।

( पूजन समर्पण करें । )

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Last Updated : May 24, 2018

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