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चतुःषष्टियोगिनी पूजनम्

पूजा विधी - चतुःषष्टियोगिनी पूजनम्

जो मनुष्य प्राणी श्रद्धा भक्तिसे जीवनके अंतपर्यंत प्रतिदिन स्नान , पूजा , संध्या , देवपूजन आदि नित्यकर्म करता है वह निःसंदेह स्वर्गलोक प्राप्त करता है ।


॥ चतुः षष्टियोगिनी पूजनम् ॥

कर्ता प्राऽमुख उपविश्य अस्मिन् योगिनी पीठे महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती पूर्वकं गजाननादि मृग लोचनान्तानां चतुःषष्टि योगिनीनां स्थापन प्रतिष्ठा पूजनानि करिष्ये ।

प्रथम पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : गजाननायै नमः ॥१॥

ॐ भू र्भुव : स्व : सिंहमुख्यै नमः ॥२॥

ॐ भू र्भुव : स्व : गृध्रास्यायै नमः ॥३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : काकतुण्डिकायै नमः ॥४॥

ॐ भू र्भुव : स्व : उष्ट्रग्रीवायै नमः ॥५॥

ॐ भू र्भुव : स्व : हयग्रीवायै नमः ॥६॥

ॐ भू र्भुव : स्व : वाराह्यै नमः ॥७॥

ॐ भू र्भुव : स्व : शरभाननायै नमः ॥८॥

द्वितीय पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : उलूकिकायै नमः ॥९॥

ॐ भू र्भुव : स्व : शिवारावायै नमः ॥१०॥

ॐ भू र्भुव : स्व : मयूर्यै नमः ॥११॥

ॐ भू र्भुव : स्व : विकटाननायै नम : ॥१२॥

ॐ भू र्भुव : स्व : अष्टवक्रायै नमः ॥१३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कोटराक्ष्यै नमः ॥१४॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कुब्जायै नमः ॥१५॥

ॐ भू र्भुव : स्व : विकट लोचनायै नमः ॥१६॥

तीसरी पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : शुष्कोदर्य्यै नमः ॥१७॥

ॐ भू र्भुव : स्व : ललज्जिह्यायै नमः ॥१८॥

ॐ भू र्भुव : स्व : द्रष्ट्रायै नमः ॥१९॥

ॐ भू र्भुव : स्व : बानराननायै नमः ॥२०॥

ॐ भू र्भुव : स्व : रुक्षाक्ष्यै नमः ॥२१॥

ॐ भू र्भुव : स्व : केकराक्ष्यै नम : ॥२२॥

ॐ भू र्भुव : स्व : बृहत्तुण्डायै नमः ॥२३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : सुरप्रियायै नमः ॥२४॥

चतुर्थ पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : कपालहस्तायै नमः ॥२५॥

ॐ भू र्भुव : स्व : रक्ताक्ष्यै नमः ॥२६॥

ॐ भू र्भुव : स्व : शुक्यै नमः ॥२७॥

ॐ भू र्भुव : स्व : श्येन्यै नमः ॥२८॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कपोतिकायै नमः ॥२९॥

ॐ भू र्भुव : स्व : पाशहस्तायै नमः ॥३०॥

ॐ भू र्भुव : स्व : दण्ड हस्तायै नमः ॥३१॥

ॐ भू र्भुव : स्व : प्रचण्डायै नमः ॥३२॥

पंञ्चम पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : चण्डविक्रमायै नमः ॥३३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : शिशुघ्न्यै नमः ॥३४॥

ॐ भू र्भुव : स्व : पापहन्त्र्यै नमः ॥३५॥

ॐ भू र्भुव : स्व : काल्यै नमः ॥३६॥

ॐ भू र्भुव : स्व : रुधिरपायिन्यै नमः ॥३७॥

ॐ भू र्भुव : स्व : वसाधयायै नमः ॥३८॥

ॐ भू र्भुव : स्व : गर्भभक्षायै नमः ॥३९॥

ॐ भू र्भुव : स्व : शवहस्तायै नमः ॥४०॥

षष्ठ पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : आन्त्रमालिन्यै नमः ॥४१॥

ॐ भू र्भुव : स्व : स्थूलकेश्यै नमः ॥४२॥

ॐ भू र्भुव : स्व : बृहत्कुक्ष्यै नमः ॥४३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : सर्पास्यायै नमः ॥४४॥

ॐ भू र्भुव : स्व : प्रेत वाहनायै नमः ॥४५॥

ॐ भू र्भुव : स्व : दन्दशूकरायै नमः ॥४६॥

ॐ भू र्भुव : स्व : क्रौञ्चयै नमः ॥४७॥

ॐ भू र्भुव : स्व : मृगशीर्षायै नमः ॥४८॥

सप्तम पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : वृषाननायै नमः ॥४९॥

ॐ भू र्भुव : स्व : व्यात्तास्यायै नमः ॥५०॥

ॐ भू र्भुव : स्व : धूमनि : श्वासायै नमः ॥५१॥

ॐ भू र्भुव : स्व : व्योमैकचरणोर्ध्वदृशे नमः ॥५२॥

ॐ भू र्भुव : स्व : तापिन्यै नमः ॥५३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : शोषिणीदृष्टयै नमः ॥५४॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कोटिर्यै नमः ॥५५॥

ॐ भू र्भुव : स्व : स्थूल नासिकायै नमः ॥५६॥

अष्टम पंक्ति में :-

ॐ भू र्भुव : स्व : विधुत्प्रभायै नमः ॥५७॥

ॐ भू र्भुव : स्व : बलाकास्यायै नमः ॥५८॥

ॐ भू र्भुव : स्व : मार्जार्यै नमः ॥५९॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कटपूतनायै नमः ॥६०॥

ॐ भू र्भुव : स्व : अट्टाट्टहासायै नमः ॥६१॥

ॐ भू र्भुव : स्व : कामाक्ष्यै नमः ॥६२॥

ॐ भू र्भुव : स्व : मृगाक्ष्यै नमः ॥६३॥

ॐ भू र्भुव : स्व : मृग लोचनायै नमः ॥६४॥

इस प्रकार चौंसठ योगिनियों का आवाहन - स्थापन करने के बाद प्रतिष्ठा करें ।

ॐ मनोजजूतिर्ज्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु ।

विश्वे देवास इह मादयन्तामो ३ प्रतिष्ठ : ॥ श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती सहिताभ्यो गजाननादि चतु : षष्टि योगिन्य : सुप्रतिष्ठिता वरदा भवत ॥ ॐ भू र्भुव : स्व : श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती पूर्वक गजाननादि चतु : षष्ठि योगिनीभ्यों नमः आवाहनादिषोडशोपचारै : पूजनं कुर्यात् -

आवाहनं , आसनं , पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयम् , स्नानं , आचमनीयम् , दुग्ध स्नानं , दधि स्नानं , घृतस्नानं , शर्करास्नानं , पञ्चामृत स्नानं , गन्धोदक स्नानं , शुद्धोदक स्नानं , आचमनीयम् , वस्त्रं , आचमनीयम् , सौभाग्य सुत्रं , चन्दनं , हरिद्राचूर्ण , कुङ्कुमं , सिन्दूरं , आभूषणं , पुष्पं /

पुष्पमालां नाना परिमलद्रव्यं , सौभाग्य पेटिकां , सुगन्धीद्रव्यं , धूंप , दीपं , हस्तप्रक्षालनम् , नैवेद्यं , आचमनीयम् , ऋतुफलं , ताम्बूलं , द्रव्यदक्षिणां , आरार्तिक्यं , प्रदक्षिणां , पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।

प्रार्थना

यदङ्गत्वेन भो देव्य : पूजिता विधिमार्गत : । कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन कुतूद्भवम् ॥

अनेन कृतेन पूजनेन ॐ भू र्भुव : स्व : श्रीमहाकाली , महालक्ष्मी महासरस्वती पूर्वक गजाननादि चतुःषष्ठि योगिन्य : प्रीयन्तां न मम : ॥

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Last Updated : May 24, 2018

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