॥ संक्षिप्त नान्दी श्राद्ध ॥
नान्दी श्राद्ध में दूर्वा या डाभ की सत्यवसु नामक विश्व देवों की दो चटें बनावें यानि दूर्वा के गाँठ देकर दोने या पत्तल में रख देवें । इसी प्रकार पितामही :, माता , प्रपितामही , पिता , प्रमातामही , प्रतिमामही की छह छटें बनावें तथा मातामही , प्रमातामही , वृद्ध प्रमातामही , माता मह , प्रमाता मह , वृद्ध प्रमातामह की भी छह चटें बनावें । कुल १२ न बनाना चाहे तो छह ही चटें बना लें । दो विश्वदेवो की अर्थात् कुल आठ बनावें । जो यानि पिता , माता , दादा , दादी आदि जीवित हो तो उनकी न बनावें । सबको पत्तल पर विराजमान कर दें ।
पश्चात्ताम्रपात्रे दधि कुंकुम यवाक्षत दूर्वा जलानि कीकृत्य सव्येनैव संकल्पं कुर्यात् ।
ताम्रपात्र या सराई में दही , रोली , जौ , दूर्वा और फल इकट्ठे करके संकल्प करें । एक पाद्य पात्र भी उपरोक्त वस्तुओं का पृथक बना लेवें । यह कर्म सव्य रहकर ही करें । फिर संकल्प करें ।
ॐ तत्सदध मासोत्तमेऽमुकमासे अमुकपक्षे तिथौ वासरे अमुककर्माङ्गीभूतं आभ्युदयिक श्राद्धमहं करिष्यै ।
पात्रस्थ यवदधि दूर्वादीन दूर्वया चालयन् निम्न मन्त्रं ब्रूयात् । यत्र वृद्धि शब्द आगच्छे त्तदा पत्रावल्यां विराजमानेषु विश्वेदेवादिषु जलं त्यजेत् ।
पात्र में जौ , दही , दूर्वा आदि हैं उनको दूर्वा या डाभ से हिलाता जावे और नीचे लिखे मन्त्र बोलता जावे । जहाँ ‘ वृद्धि ’ आवे वहाँ दूर्वाङ्कारों से कुछ जल लेकर पत्तल पर विराजमान विश्वदेवों पर छोडता जावे ।