पवित्र आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर सर्वप्रथम आचमन और प्राणायाम करें । पश्चात् निम्नाङ्कित मन्त्र से अपने दाएँ हाथ की अनामिका अङ्गुली में कुश की पवित्री धारण करें---
ॐ पवित्रे स्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्व्व: प्रसव ऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि: । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम् ॥
पश्चात् नीचे लिखे मन्त्र से अपने को पवित्र करें---
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्माभ्यन्तर: शुचि: ।
अनन्तर निम्नाङ्कित सङ्कल्प करें---
देशकालौ सङ्कीर्त्य गोत्र: शर्माऽहं वर्माऽहम्, गुप्तोऽहम् मम गृहे कण्डनी-पेषणी-चुल्ली-सम्मार्जनी-गृहलेपनादि-हिंसाजन्य-दोषपरिहारपूर्वकान्नशुद्ध्यात्मसंस्कारसिद्धिद्वारा श्रीपरमेश्वर-प्रीत्यर्थं बलिवैश्वदेवकर्म करिष्ये ।
पश्चात् लौकिक अग्नि प्रज्वलित करके अग्निदेव का निम्नाङ्कित मन्त्र पढते हुए ध्यान करें---
ॐ चत्वारि श्रृङ्गा त्रयो ऽअस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो ऽअस्य ।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्यां ऽआविवेश ॥
‘इस अग्निदेव के चार सींग, तीन पैर, दो सिर और सात हाथ हैं ।
कामनाओं की वर्षा करनेवाला यह महान् देव तीन स्थानों में बँधा हुआ शब्द करता है और प्राणियों के भीतर जठरानलरूप से प्रविष्ट है ।’
फिर नीचे लिखे मन्त्र को पढकर अग्निदेव को मानसिक आसन दें---
ॐ एषो ह देव: प्रदिशोऽनु सर्वा: पूर्वो ह जात: स ऽउ गर्भेऽअन्त: ।
स ऽएव जात: स जनिष्यमाण: प्रत्यङ जनास्तिष्ठति सर्वतोमुख: ॥
‘यह अग्निस्वरूप परमात्मदेव ही सम्पूर्ण दिशा-विदिशाओं में व्याप्त है, यही हिरण्यागर्भरूप से सबसे प्रथम उत्पन्न प्रकट हुआ था, माता के गर्भ में भी यही रहता है और यही उत्पन्न होनेवाला है, हे मनुष्यो ! यही सर्वव्यापक और सब ओर मुखोंवाला है ।’
पश्चात् अग्निदेव को नमस्कार करके घर में बने हुए बिना नमक के पाक को अथवा घृताक्त कच्चे चावल को एक पात्र में रख लें और यज्ञोपषीत को सव्य कर अन्न की पाँच आहुतियाँ नीचे लिखे पाँच मन्त्रों को क्रमश: पढते हुए बारी-बारी से अग्नि मे छोडें अग्नि के अभाव में एक पात्र में जल रखकर उसी में आहुतियाँ छोड सकते हैं ।
(१) देवयज्ञ
१ ॐ ब्रह्मणे स्वाहा, इदं ब्रह्मणे न मम ।
२ ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम ।
३ ॐ गृह्याभ्य: स्वाहा, इदं गृह्यभ्यो न मम ।
४ ॐ कश्यपाय स्वाहा, इदं कश्यपाय न मम ।
५ ॐ अनुमतये स्वाहा, इदमनुमतये न मम ।
पुन: अग्नि के पास हो पानी से एक चौकोना चक्र बनाकर उसका द्वार पूर्व की ओर रखे और उसी में बतलाये जानेबाले स्थानोंपर क्रमश: बीस ग्रास अन्न देना चाहिये । जिज्ञासुओं की सुविधा के लिये नकशा और ग्रास अर्पण करने के मन्त्र नीचे दिये जाते हैं । नकशे में केवल अङ्क रखा गया है, उसमें जहाँ एक है वहाँ प्रथम ग्रास और दो की जगह दूसरा ग्रास देना चाहिये । इसी प्रकार तीन से चलकर बीसतक क्रमश: निर्दिष्ट स्थानपर ग्रास देना चाहिये । क्रमश: बीस मन्त्र दिये जाते हैं, एक-एक मन्त्र पढकर एक-एक ग्रास अर्पण करना चाहिये ।
(२) भूतयज्ञ
१ ॐ धात्रे नम:, इदं धात्रे न मम ।
२ ॐ विधात्रे नम:, इदं विधात्रे न मम ।
३ ॐ वायवे नम:, इदं वायवे न मम ।
४ ॐ वायवे नम:, इदं वायवे न मम ।
५ ॐ वायवे नम:, इदं वायवे न मम ।
६ ॐ वायवे नम:, इदं वायवे न मम ।
७ ॐ प्राच्यै नम:, इदं प्राच्यै न मम ।
८ ॐ अवाच्यै नम:, इदमवाच्यै न मम ।
९ ॐ प्रतीच्यै नम:, इदं प्रतीच्यै न मम ।
१० ॐ उदीच्यै नम:, इदमुदीच्यै न मम ।
११ ॐ ब्रह्मणे नम:, इदं ब्रह्मणे न मम ।
१२ ॐ अन्तरिक्षाय नम:, इदमन्तरिक्षाय न मम ।
१३ ॐ सूर्याय नम:, इदं सूर्याय न मम ।
१४ ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम:, इदं विश्वेभ्यो देवेभ्यो न मम ।
१५ ॐ विश्वेभ्यो भूतेभ्यो नम:, इदं विश्वेभ्यो भूतेभ्यो न मम ।
१६ ॐ उषसे नम:, इदमुषसे न मम ।
१७ ॐ भूतानां पतये नम:, इदं भूतानां पतये न मम ।
(३) पितृयज्ञ
यज्ञोपवीत को अपसव्य करके बाएँ घुटने को पृथ्वी पर रखकर दक्षिण की ओर मुख करके हो सके तो साथ में तिल लेकर, पव्क अन्न अङ्कित मण्डल में निदिष्ट स्थानपर मन्त्र पढकर रख दें ।
१८ ॐ पितृभ्य: स्वधा नम:, इदं पितृभ्य: स्वधा न मम ।
निर्णेजनम्
यज्ञोपवीत को सव्य करके अन्न के पात्र को धोकर वह जल अङ्किन मण्डल में १६वें अङ्क की जगह मन्त्र पढकर छोड दें ।
१९ ॐ यक्ष्मैतत्ते निर्णेजनं नम:, इदं यक्ष्मणे न मम ।
(४) मनुष्ययज्ञ
यज्ञोपवीत को माला की भाँति कण्ठ में करके उत्तराभिमुख हो पव्क अन्न अङ्कित मण्डल में २०वें अङ्क की जगह मन्त्रद्वारा छोड दें ।
२० ॐ हन्त ते सनकादिमनुष्येभ्यो नम:, इदं हन्त ते सनकादिमनुष्येभ्यो न मम ।
(१) गोबलि
इसके वाद निम्नाङ्कित मन्त्र पढते हुए सव्य भाव से ही गौओं के लिये बलि अर्पण करें---
ॐ सौरभेय्य: सर्वहिता: पवित्रा: पुण्यराशय: ।
प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातर: ॥
इदमन्नं गोभ्यो न मम ।
(२) श्वानबलि
फिर यज्ञोपवीत को कण्ठ में माला की भाँति करके कुत्तों के लिये ग्रास दें । मन्त्र यह है---
ॐ द्वौ श्वानौ श्यामशवलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ ।
ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ ॥
इसमन्नं श्वभ्यां न मम ।
(३) काकबलि
पुन: यज्ञोपवीत को अपसव्य करके नीचे लिखे मन्त्र को पढते हुए कौओं के लिये भूमिपर ग्रास दें---
ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या याम्या वै नैऋतास्तथा ।
वायसा: प्रतिगृह्णन्तु भूमौ चाऽन्नं मयापिंतम् ॥
इदमन्नं वायसेभ्यो न मम ।
(४) देवादिबलि
फिर सव्यभाव से निम्नाङ्कित मन्त्र पढकर देवता आदि के लिये अन्न अर्पण करें---
ॐ देवा मनुष्या: पशवो वयांसि सिद्धा: सयक्षोरगदैत्यसङ्घा: ।
प्रेता: पिशाचास्तरव: समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम् ॥
इदमन्नं देवादिभ्यो न मम ।
(५) पिपीलिकादिवलि
इसी प्रकार निम्नाङ्कित मन्त्र से चींटी आदि के लिये अन्न दें---
ॐ पिपीलिका: कीटपतङ्गकाद्या वुभुक्षिता: कर्मनिबन्धबद्धा: ।
तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयाऽन्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु ॥
इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम ।
तदनन्तर हाथ धोकर भस्म लगावें और निम्नाङ्कित मन्त्र से अग्नि का विसर्जन करें---
ॐ यज्ञ यज्ञं गच्छ यज्ञपतिं गच्छ स्वां योनिं गच्छ स्वाहा ।
एष ते यज्ञो यज्ञपते सहसूक्तवाक: सर्ववीरस्तं जुषस्व स्वाहा ॥
‘हे यज्ञ ! तुम अपनी प्रतिष्ठा के लिये यज्ञस्वरूप विष्णु भगवान्को प्राप्त हो, कर्म के फलरूप से यज्ञपति-यजमान को प्राप्त हो तथा अपनी सिद्धि के लिये तुम अपने कारणभूत वायुदेव की क्रियाशक्तिको प्राप्त हो, यह हवन सुन्दररूप से सम्पन्न हो । हे यजमान ! स्तवनीय चरु, पुरोडाश आदि सब अङ्गों तथा सूक्त, अनुवाक और स्तोत्रों सहित यह किया जानेवाला यज्ञ तुम्हारा हो, तुम इस यज्ञ का सेवन करो । यह हवनकर्म सुन्दररूप से सम्पन्न हो ।’
तत्पश्चात् कर्म में न्यूनता की पूर्ति के लिये निम्नाङ्कित श्लोकों को पढते हुए भगवान् से प्रार्थना करें---
ॐ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णो: सम्पूर्णं स्यादिति श्रुति: ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियदिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥
फिर नीचे लिखे वाक्य को पढकर यह कर्म भगवान् को अर्पण करें ।
अनेन बलिवैश्वदेवाख्येन कर्मणा परमेश्वर: प्रीयतां न मम ।
ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: ।