सच्चिदानंद दानी ॥ काय औदार्य वाणू ॥ न सरे दान देता ॥ निष्काम कामधेनू ॥
आपुल्या निज तेजे ॥ उजळे त्रैलोक्य भानू ॥ बोलता बोलवेना ॥ श्रुतिनेणतिवाणू ॥१॥
ऐशिया सदगुरुसी ॥ काय उजळू ज्योति ॥ उजळिता उजळवेना ॥ शब्द तेथेचि लोपति ॥ ऐशिया ॥धृ॥
चौदेहा वारुनीया ॥ निजगव्हरी नांदे ॥ स्वानंद पुतळा हो ॥ भक्त उध्दार काजे ॥
चिन्मुद्रि खुणे बोधी ॥ मौनातीत गतिवाहे ॥ सर्वत्र समव्याप्त ॥ सदानन्दी गुहे राहे ॥२॥
ऐशिया सदगुरुसी ॥धृ॥
अवाच्य सुखे डोले ॥ सर्वाभूति साक्ष ठेले ॥ अनादि युगकल्पे ॥ सदानंद पदि ग्वाहि ॥
शिवरामि भेद नांही ॥ नारायणि पूर्ण राही ॥३॥
ऐशिया सदगुरुसी ॥धृ॥
॥ आरती पुर्णानंदाची ॥
काशीयात्रा सप्तकवारी गुरुचरणी ॥ आजीवन वृत वाहुनि तपिले अनवाणी ॥
आज्ञा वाहुनि निवास करिती कल्याणी ॥ शिवरामा उपदेशुनि वाढवि वयमानी ॥१॥
जयदेव जयदेव क्षीराब्धिशयना ॥ युगयुगी अवतारिशि तू भक्तांकित चरणा ॥
पुर्णानंद नारायण निवसशि कल्याणा ॥ गुरुसेवे आजीवनि कलिमल अघहरणा ॥ जयदेव जयदेव ॥धृ॥
वरदाभय शंखाणि चक्रासि वहनी ॥ विहिरीतुनि हीरापुरि अवतरशी अवनी ॥
शिवरामाच्या इच्छे भक्ता दर्शनी ॥ आनंदाम्नायांकित भक्ताउध्दरणी ॥ जयदेव जयदेव ॥२॥
पूर्णानंद चरित्रा चरणी अर्पीता ॥ गुरुमार्गा निर्देशुनि ग्रंथा दाविता ॥
आज्ञांकित भक्तावरि प्रसन्न वर देता ॥ हनुमदात्मज लाभत तुलशी गंधऋता ॥ जयदेव जयदेव ॥३॥
॥ ॐ ॥
॥ इति श्रीपूर्णानन्द चरित्रहनुमदात्मजः कृते ॥
॥ महाकाव्यः समाप्तः ॥