रुपेण -इस मन्त्रको पढकर चांदीके जलोंसे, पदस्याय०- मन्त्रको पढकर वस्त्रके जलोंसे और तीर्थके जलोंसे स्नान कराकर फ़िर शुध्द जलोंसे स्नान करावे ॥२२१॥
फ़िर सफ़ेद वस्त्रसे समार्जन करके और सब अंगोंमे गन्धका लेपन करके वास्तुम्ण्डलमेम नाममंत्रोंसे ब्रम्हाआदिका पुजन करे ॥२२२॥
वह पूजन षोडश उपचारोंसे करै और मूल मध्य शिरके ऊपर स्नान और अभिषेक वेदके मन्त्रोंसे करावे ॥२२३॥
आब्रह्यन० भद्रंकर्णोभि: इन मन्त्रोंको और जातवेदस० यमाय त्वा० इन मन्त्रोंको पढकर नंदा भद्राजया रिक्तासे स्नान करावे ॥२२४॥
और पूर्णादर्वि०- इस मन्त्रको पढकर पूर्णा शिलाको क्रमसे स्नान करावे. मूल मध्यमें तिसी प्रकार नामके मन्त्रोंसे स्नान करावे ॥२२५॥
और ब्रह्यजज्ञानं०- नमस्ते रुद्र०- विष्णोरराट०- इमं देवा०- इन मन्त्रोंको भलीप्रकार जपै ॥२२६॥
और शिरके ऊपर तद्विष्णो: परमं पदम० इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधानिदधे पदम० इन मन्त्रोंसे विष्णुका ॥२२७॥
समख्ये देव्याधिया०- और त्र्यम्बकं यजामहे० इन मंत्रोंसे शिवका आवाहन करे. मूर्द्वानन्दिवो० इस ऋचासे भलीप्रकार विधिसे पूजा करके ॥२२८॥
उनको सुबर्ण वस्त्र और अलंकार वस्त्रोंको देकर और पुण्याहवाचन करके शिलाके स्थापनको कर ॥२२९॥
श्रेष्ठ लग्नकी प्रप्तिके समयमें पांच प्रकारके वाद्योंको बजवावे नामकी शिलाको ग्रहण करके आधार शिलाका स्थापन कर ॥२३०॥
फ़िर उस शिलाके ऊपर मंत्रोंको पढकर ऎसे सातकलशोंको रक्खे जो सर्वोंषधि जल घी और सहत इनसे युक्त हों ॥२३१॥
जो ढकेहुएहों जिनमें रत्न पडाहुआहो और जो तेजके समूहसे युक्त होम और सदाशिवके स्वरुपका ध्यान करके पँचोपचारोंसे पूजन कर ॥२३२॥
बांये भागमें कियेहुए गर्तमें दीपकको रखकर ऊसके ऊपर नन्दानामकी शिलाको रखदे ॥२३३॥
नाभिमें० इस मन्त्र और स्थिरो भव० इस वाक्यसे मन्त्रका ज्ञाता तिसके अनंतर शास्त्रोक्त विधिसे प्रार्थना करे ॥२३४॥
हे नन्दे ! तू पुरुषको आनंद देनेहारी है मैं तेरा यहां स्थापन करता हु इस प्रासादमें प्रसन्नहुई तवतक टिक, जबतक चन्द्रमा सूर्य तारांगं हैं ॥२३५॥
हे नन्दिनी ! हे देववासिनि ! आयु कामना और लक्ष्मीको दे इस मेरे प्रासादमेम यत्नसे रक्षा कर ॥२३६॥
उस शिलापर रत्न हैं गर्भमें जिसके ऎसे महापद्मको रक्खे. उस पद्मपर भद्रनामकी शिलाको रखकर नामके मन्त्रोंसे पूजन् करे ॥२३७॥
अथवा भद्रंकर्णेभि:० इस ऋचासे वा वरुणके मन्त्रोंसे स्थापन करे. हे भद्रे ! हे काश्यपि तू सदैव लोकोंमें कल्यान कर ॥२३८॥
हे देवि ! तू आयु, कामना और सुखकी दाता सदैव हो, हे भद्रके देनेहारी ! तेरा इस घरमें आज स्थापन करताहुं ॥२३९॥
आधारके ऊपर शंखनामके कलशको रखकर और कोणमें उसका विधिसे भलीप्रकार पूजनकरके फ़िर जया नामकी शिलाका भलीप्रकार पूजक करै ॥२४०॥