शंख और तूर्य्य आदिकोंका शब्द होय तो गृह वस्तुओंसे विपुल रहता है, स्त्री और कन्याओंकी जो क्रीडा है वह सूत्र रखनेके समयमें होय तो धनकी वृध्दि होती है ॥२०१॥
ये गृहके प्रारंभमें शुभ हैं और गृहके छाबनेमें मृत्यु और रोगको देती है. स्थंभ आदिके रखनेमें मध्यम और प्रवेशके समयमें होय तो उत्तम वृष्टि होती हैं ॥२०२॥
काष्ठके छेदनमे दु:ख शोक रोगको देती है और परीक्षाके समयमेंभी सुखदायी नहीं कही है ॥२०३॥
यदि सूत्र रखनेके समयमें छत्र ध्वज पताकाओंका दर्शन होय तो निधि ( खजाना ) का संभव जानना यदि घट जलसे पूर्ण रहे तो श्रेष्ठ प्राप्ति और पूर्ण घट और कलकल शब्द होय तो स्थिरता होती है ॥२०४॥
घरकी सब कोणोंमें विधिसे पूजाको करके ईशान दिशासे लेकर प्रदक्षिणा क्रमसे सूत्रको रक्खे ॥२०५॥
इसी विधिसे स्थंभ और द्बाराआदिका आरोपण करै और भली प्रकार सावधानीसे वास्तु विद्याकी विधिको करै ॥२०६॥
नन्दा भद्रा जया रिक्ता पूर्णा नाम्नी को क्रमसे शिला हैं उनमें नन्दामें पद्मको लिखे और भद्रामें सिंहासनको ॥२०७॥
जयामें तोरण, रिक्तामें छत्र और कर्मको करै और पूर्णामें चार भुजावाले विष्णुको यत्नसे स्थापन करै ॥२०८॥
ॐ भूर्भव: स्व: इस मंत्रको पढकर सबका आवाहन कहा है ब्रम्हा विष्णु रुद्र ईशान और सदाशिव ॥ ॥२०९॥
इन पांचोंका आवाहन करै और पांचोंके स्थानमेम फ़िर भूतोंका आवाहन करै फ़िर शास्त्रकी विधिमें देखेहुए कर्मसे स्नान करावे ॥२१०॥
सावधानहुए ऋत्विज पांच कलशोंसे स्नान करावैं उनके नाम श्रवण करो पद्म महापद्म शंख विजय ॥२११॥
और पांचवां सर्वतोभद्र होता है मंत्रसे उनका आवाहन करै अग्निर्मूर्द्वा इस मंत्रको पढकर मिट्टीसे यज्ञापन इस मंत्रको पढकर जलोंसे ॥२१२॥
अश्वत्थ इस मंत्रसे पंच कषायों और पत्तोंके जलसे गायत्रीको पढकर गोमूत्रसे गन्धद्बारा इस मन्त्रको पढकर गोमयसे ॥२१३॥
आप्यायस्व इस मन्त्रको पढकर दुग्धसे और दक्षिकाव्ण: इस मन्त्रको पढकर दधिसे, घृतंभि० इस मन्त्रको पढकर घृतसे, मधुवाता इस मन्त्रको पढकर मधुसे ॥२१४॥
पय: पृथिव्यां इस मन्त्रको पढकर पंचगव्यसे, देवस्यत्वा इस मन्त्रको पढकर कुशाओंसे, काण्डात्काण्डात इस मत्रको पढकर दूबसे ॥२१५॥
गन्थद्वारं इस मन्त्रको पढकर गन्धसे और पंचगव्यसे और या औषधी: इस मंत्रसे औषधियोंसे और या: फ़लिनी इस मंत्रको पढकर फ़लके जलोंसे ॥२१६॥
नमस्ते इस मंत्रको पढकर बैलके सींगकी मिट्टीसे और धान्यमसि - इस मंत्रको पढकर धान्यको जलोंसे और आजिघ्रकलशम० इस मत्रसे कलशके जलोंसे ॥२१७॥
ओषधय:०- इस मन्त्रको पढकर अक्षतोंसे यवोऽसि०- इस मन्त्रको पढकर जवके जलोंसे तिलोऽसि० - इस मन्त्रको पढकर तिलोंसे, पंचनद्य:० इस मन्त्रको पढकर नदीके जलोंसे ॥२१८॥
इमं मे गंगे०- इस मन्त्रको पढकर तीर्थके जलोंसे, नमोस्तु रुद्रेभ्य:० इस मन्त्रको पढकर नग ( पर्वत ) और हस्ति शालाकी मिट्टीसे स्नान करावे ॥२१९॥
स्योनापृथिवी०- इस मन्त्रको पढकर हलकी मिट्टी सहतमिली मिट्टॆएसे और हिरण्यगर्भ०- इस मन्त्रको पढकर सुवर्णके जलोंसे स्नान करावे ॥२२०॥