मृगको और नीलपदको जौकी बलि दे पितज और दौवारिकको कृशरान्न ( खिचडी ) की बलि दे ॥१२१॥
सुग्रीवको दतोन कृष्णचूर्ण दंतकाष्ठ्य पूडे और जौ इनकी बलि दे ॥१२२॥
पुष्पदन्त और वरुणको पायस ( खीर ) की बलि दे. और यमकी कुशाका स्तंभ पीठी और सुवर्णकी बलि दे ॥१२३॥
असुरको मदिराकी बलि, शोषको घृतौदनकी बलि कही है, पापयक्ष्माको गोह्यकी और रोगको घी और ओदनकी बलि दे ॥१२४॥
अहिको फ़ल पुष्प नाग्केसरकी बलि दे. मुख्यको घी और गेहूंकी, भल्लाटको मूंगओदनकी बलि दे ॥१२५॥
सोमको पायस और घीके, नागको पुष्टिके पदार्थ और शालियोंकी, अदितिको पोलियोंकी अर्थात रोटियोंकी, दितिको पूरियोंकीए बलि कही है ॥१२६॥
जलको दूध, सविताको कुशौदन देना, लड्डू और मिर्च, घृत और चंदन ॥१२७॥
रुद्रको दे पायस और गुड अर्यमाको, और खांड मिला हुआ पायस भी अर्यमाको दे और सविताको गूड और अपूपोंकी बलि कही है ॥१२८॥
विवस्वानको रक्तचंदन और पायसकी बलि दे और इंद्रको घीसहित हरिताल और ओदनकी बलि दे ॥१२९॥
मित्रको घृतौदन कच्चे मांस और सहतकी बलि दे. राजयक्ष्मा पृथ्वीधर और मितौजस इनको ॥१३०॥
मांस कूष्माण्डकी बलि दे. आपवत्सको दधिकी बलि दे. ब्रम्हाको पंचगव्य जौ तिल अक्षत दधि इनकी बलि दे ॥१३१॥
अनेक प्रकारकेभक्ष्य भोज्य और अनेक प्रकारकेफ़ल सम्पूर्णदेवताओंको दे, इस पूर्वोक्त रीतिसे भलीप्रकार बलि देकर सम्पूर्ण देवताओंकोसुवर्ण दे ॥१३२॥
यह संपूर्ण ॐकार जिनकी आदिमें और चतुर्थीबिभक्ति जिनके अन्तमें ऎसे नाममन्त्रोंसे मन्त्रके ज्ञातको देने और सब देवताओंको सुवर्ण देना और ब्रम्हाको दूध देती हुई गौको दे ॥१३३॥
अथवा सब देवताओंको दीपक सहित पायस दे फ़िर विधिसे बाह्यमें स्थित देवताओंको बलि दे ॥१३४॥
चरकीको उडदोंका भक्त और घीसहित पद्मकेशर और हवि दे और अग्निकोणमें विदारिकाको चन्दोवा ॥१३५॥
माष भक्त रुधिर और हरिद्राभक्त दे और नैऋत में पूतनाको माषभक्तसे मिले हुए ॥१३६॥
रुधिर अस्थि और पीत: रक्तकी बलि निवेदन करै और वायव्यमें पाप राक्षसीको मत्स्यका मांस और सुरासवका, निवेदन करै ॥१३७॥
फ़िर पूर्व आदि दिशाओमें स्कन्दको रुधिर और सुरा दे, दक्षिणमें अर्यमाको माषभक्त निवेदन करै ॥१३८॥
पश्चिममे जंभाकको मांस और रुधिर दे. उत्तरमें पिलिपिच्छको बलि कही है ॥१३९॥
इन पूर्वोक्त देवतओंको विधिसे बलि दे और तिसी प्रकार प्रसाद आदिमें इनको भलीप्रकार बलि दे ॥१४०॥