आप पश्चिमको मुख करके पूर्वाभिमुख बैठे हुए यजमानको अपनी शाखामें कहे वेदके मन्त्रोंसे ॥१६१॥
अथवा पौराणिक मन्त्रोंसे वस्त्रपर स्थित कुटुम्बसहित पूर्वोक्त यजमानको घटके जलसे स्नान करवावे ॥१६२॥
स्त्री और पुत्रसहित यजमानको ऋत्विजभी स्नान करवावे देवता और जो पुरातन सिध्द हैं वे भी हे यजमान ! आपका अभिषेक करो ॥१६३॥
ब्रम्हा विष्णु शंभु साध्य मरुद्वण आदित्य वसु रुद्र और वैद्योंमें उत्तम अश्विनीकुमार ॥१६४॥
देवताओंकी माता अदिती स्वाहा सिध्दि सरस्वती कीर्ति दिति श्री सिनीवाली और कुहु ॥१६५॥
दिति सुरसा विनता कद्रु और जो देवताओंकी पत्नी शास्त्रोंमें कही हैं और देवताओंकी माता ॥१६६॥
भो यजमान ! ये सब आपका अभिषेक करो और शुभ अप्सराओंके गण नक्षत्र मुहुर्त और अहोरात्रकी संधि ॥१६७॥
संवत्सर जिनके स्वामी कला काष्ठा क्षण और लव शुभदायी कालके अवयव भो यजमान ! ये सब आपका अभिषेक करो ॥१६८॥
ये देवता और अन्य जो वेदव्रतमें परायण है वे शिष्योंसहित दानी और तपोधन भो यजमान ! आपका अभिषेक करो ॥१६९॥
विमानमें स्थित देवताओंके गण शब्दायमान समुद्र महाभागी मुनि नाग किंपुरुष खग ॥१७०॥
महाभागी वैखानस आकाशगामी पक्षी स्त्रियोंसहित सप्त ऋषि और जो ध्रुवस्थान हैं ॥१७१॥
मरीचि अत्रि पुलह पुलस्य क्रतु अंगिरा भृग सनत्कुमार सनक सनन्दन ॥१७२॥
सनातन दक्ष जैगीषव्य भलन्दन एकत द्वित त्रित जाबालि और कश्यप ॥१७३॥
दुर्वासा दुर्विनीत कण्व कात्यायन और दीर्घतपा मार्कण्डेय शुन:शेफ़ और विदुरथ ॥१७४॥
और्व संवर्तक च्यवन अत्रि पराशर द्वैपायन यवक्रीत और अनुजसहित देवराज ॥१७५॥
पर्वत वृक्ष वल्ली और पुण्यस्थान प्रजापति दिति और विश्वकी माता गौ ॥१७६॥
दिव्य वाहन और संपूर्ण चराचर लोक अग्नि पितर मेष आकाश दिया जल ॥१७७॥
ये और वेदके व्रतमें परायण अन्य बहुतसे ऋषि इन्द्र्सहित देवताओईके गण और जिनका पुण्य यश कीर्तन है वे सब ॥१७८॥
सम्पूर्ण ऊत्पातोंकी शान्तिके लिये जलोंसे आपका उस प्रकार अभिषेक करो जैसे प्रसन्न मनसे इन्होंने इन्द्र्का अभिषेक किया है ॥१७९॥
अर्थके जाननेमें समर्थ इन देवताओंका नाम लेकर मरुद्वण सहित पुराणकेम मन्त्रोंसे अभिषेक करे ॥१८०॥