पणि n. एक वैदिक जाति । इस जाति के लोग वैदिक ऋषियों के देवताओं की उपासना न करनेवाले लोगो में से थे । संभवतः ये कही आदिवासी अनार्य वा दैत्य रहे होंगे । इनके राजा का नाम ‘बृबु’ था ।
[ऋ.६.४५.३१-३३] ; बृबु देखिये । रॉथ के अनुसार, ‘पणि’ शब्द ‘पण’ (विनिमाय) धातु से व्युत्पन्न हुआ था, एवं ‘पणि’ ऐसे जाति के लोग थे, जो बिना किसी प्रतिप्राप्ति के अपना कुछ नहीं देते थे, अतः ये ऐसे कृपण लोग थे जो न तो देवों की उपासना करते थे, और न पुरोहितों को दक्षिणाएँ देते थे (रॉंथ-सेंट पिटर्सबर्ग कोश) । यास्क एवं सायणाचार्य भी पणि को वणिज जाति का कहते है
[नि.२.१७,६.२६] । ऋग्वेद के सूक्तकार अपने विरोधियों को ‘इंद्रशत्रु’ ‘अयज्वन्’ आदि अपमान दर्शक शब्दों से संबोधित करते हैं । इस प्रकार पणियों को भी संबोधित किया गया है । इन्हें गंदे, कंजूस आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है
[ऋ.१०.१०८] । इन पर आक्रमण करने की प्रार्थना देवों से की गयी हैं एवं वामदेव ने अपनी प्रार्थना में कहा हैं, ‘अत्यंत निबिड अंधकार में पणि गिरें
[ऋ.४.५१.३] । ऋग्वेद में एक स्थल पर, इन्हें शत्रु के नाते भेडिया कहा गया है
[ऋ.६.५१.१४] एवं दूसरे एक स्थल पर इन्हें ‘बेकनाट’ (व्याज खानेवाला) कहा है
[ऋ.८-६६.१०] । एक अन्य स्थल पर, इन्हें ‘दस्यु’ कह कर, इनके लिये ‘मृध्रवाच’ (कटु वाणी बोलनेवाला, एवं ‘ग्रंथिन्’ (अपरिचित वाणी बोलनेवाला) शब्दों का प्रयोग किया गया है
[ऋ. ७.६.३] । इन्हें ‘वैरदेय’ कह कर मनुष्यों से हीन माना गया है
[ऋ.५.६१.८] । कृपण के रुप में, पणि वैदिक यज्ञकर्ताओं के विरोधी थे
[ऋ.१.१२४.१०,४.५१.३] । दैत्यों के रुप में आ कर ये आकाश की गायों या जलों को रोक रखते थे
[ऋ.१.३२.११] ;
[श. ब्रा..१३.८.२.३] । ऋग्वेद के ‘सरमापणि-संवाद’ में ऐसी ही एक कथा दी गयी हैं
[ऋ.१०.१०८] । पणियों ने इंद्र की गायों का हरण किया । फिर इंद्र के दूत बन कर, सरमा पणियों के पास आयी, एवं इंद्र की गायें लौटाने की धमकी उसने इन्हें दे दी । वही ‘सरमा-पणि-संवाद’ है । पणियों का वध कर के देवों ने उन्हें पराजित किया था । फिर पणियों की सारी संपत्ति कब्जे मैं ले कर, देवों ने उसे अंगिरसों को दे दी
[ऋ.१.८३.४] । अथर्वन् अंगिरस इंद्र का गुरु था, एवं उसने अग्नि उत्पन्न कर, उसे हवि अर्पण किया था । इस पुण्य के कारण, देवों ने अंगिरसों पर कृपा की । लुडविग के अनुसार, ‘पणि’ लोग आदिवासी व्यवसायी थे एवं काफिलों में चलते थे
[लुडविग. ३.२१३-२१५] । हिलेब्रान्ट के अनुसार ये लोग इराण में रहनेवाले थे, एवं स्ट्राबों के ‘पारियन’, टॉलेमी के ‘पारुपेताइ,’ अर्रियन के ‘बारसायन्टेस; से समीकृत थे
[हिलेब्रान्ट. १.८३] । दिवोदास राजा के साथ हुए पणियो के युद्ध का संबंध भी हिलेब्रान्ट ने इराण से ही लगा है । किंतु दिवोदास एवं पणियों का यह स्थानान्तर असंभाव्य प्रतीत होता है ।
पणि II. n. पाताल का एक असुर
[भा.५.२४.३०] ।