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मद्रः [madrḥ] [मद्-रक् [Uṇ.2.13] ]
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मद्र n. मद्र देश में रहनेवाले लोगों के लिए प्रयुक्त सामुहिक नाम । बृहदारण्यक उपनिषद में इन लोगों का निर्देश प्राप्त है [बृ.उ.३.३.१, ७.१] । उपनिषदों में वर्णित मद्रगण कुरुओं भॉंति मध्यदेश के कुरुक्षेत्र नामक स्थान में बसे हुए थे । उस समय पतंचल काप्य नामक आचार्य इन्हे के बीच रहता था । ऐतरेय ब्राह्मण में उत्तर मद्र लोगों का निर्देश प्राप्त है, जिन्हे हिमालय पर्वत के उस पार (‘परेण हिमवन्गगों’) उत्तर कुरुओं के पडोस के रहिवासी बताया गया है [ऐ.ब्रा.८.१४.३] । त्सिमर के अनुसार, ये लोग काश्मीर के रावी एवं चिनाब के मध्यवर्ति भूभाग में रहते थे [आल्टिन्डिशे. लेबेन.१०२] । महाभारतकाल में इन लोगों का राजा शल्य था, जिसकी बहन माद्री कुरुवंशीय राजा पाण्डु को विवाह में दी गयी थी । उस समय भीष्म अपने मंत्री, ब्राह्मण, एवं सेना को साथ ले कर इस देश में आये थे, एवं उस्ने पाण्डु के लिए माद्री का वरण किया [म.आ.१०५.४-५] । युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ के समय, पाण्डुपुत्र नकुल ने इन लोगों पर प्रेम से विजय प्राप्त किया था, एवं ये लोग युधिष्ठिर के लिए भेंट ले कर आये थे [म.स.२९.१३, ४८.१३] । महाभारत के पूर्वकाल में, सती सावित्री का पिता अश्वपति मद्र देश में का नरेश था [म.व.२९३.१३] । कर्ण ने मद्र एवं वाहीक देशों को आचारभ्रष्ट बता कर उनकी निंदा की थी [म.क.३०.९,५५, ६२, ६८-७१] ।
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N. N. of a country; विराट- पाण्ड्ययोर्मध्ये पूर्वदक्षक्रमेण च । मद्रदेशः समाख्यातः ......
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A ruler of that country.
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