विश्र्वकर्मन् (भौवन) n. एक सुविख्यात वैदिक राजा। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, इसे कश्यप ने ऐंद्र अभिषेक किया था, जिस समय इसने कश्यप को दक्षिणा के रूप में पृथ्वी का दान दिया था
[ऐ. ब्रा. ८.२१.८] । शतपथ ब्राह्मणमें इसके द्वारा ‘सर्वमेधयज्ञ’ में कश्यप को समस्त पृथ्वी का दान देने का निर्देश प्राप्त है
[श. ब्रा. १३.७.१.१५] । किन्तु इन दोनों ही अवसरों पर, पृथ्वी ने अपना इस प्रकार दान दिया जाना अस्वीकृत कर दिया। इस कारण, क्रुद्ध हो कर इसने समस्त प्राणिसृष्टि की, एवं अंत में स्वयं की यज्ञ में आहुति दे दी
[ऋ. १०.८१.१] ;
[ऐ. ब्रा. ८.१०] ;
[नि. १०.२६] । यज्ञसंस्था के प्रारंभिक काल में भूमिदान घृणास्पद माना जाता था, जिसका ही संकेत विश्र्वकर्मन की उपर्युक्त कथा में किया हुआ प्रतीत होता है ।