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विदेघ माथव

   
Script: Devanagari

विदेघ माथव     

विदेघ माथव n.  एक राजा, जो विदेघ लोगों का प्रमुख था [श. ब्रा. १.४.१.१०] । ये ‘विदेघ’ लोग ही आगे चल कर ‘विदेह’ नाम से सुविख्यात हुए। मथु का वंशज होने से, इसे ‘माथव’ पैतृक नाम हुआ होगा।
विदेघ माथव n.  इस राजा के संबंध में एक चमत्कृतिपूर्ण कथा शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त है, जिसके अनुसार इसने अपने मुख में अग्नि को बँध कर रखा था । मुँह खोलने से अग्नि बाहर आयेगा, इस आशंका से यह किसी सी भी बात न करता था । इसके पुरोहित का नाम रहूगण गौतम था, जिसने इसके मुख में बँध रखे हुए अग्नि को बाहर लाने के लिए अनेकानेक प्रयत्न किये। उसने अग्नि की विविध प्रकार से स्तुति भी की, किन्तु उसका कुछ असर न हुआ। एक बार गौतम ने सहजवश ‘घृत’ शब्द का उच्चारण किया, जिससे इसके मुख में बंद किया गया अग्नि अपनी सहस्त्र जिह्राएँ फैला कर बाहर आया। वह अग्नि सारे संसार को जलाने लगा, एवं विदेघ एवं गौतम को दग्ध करने लगा। उसने सृष्टि की नदियाँ भी सुखाना प्रारंभ किया। अग्नि के इस दाह को शांत कराने के लिए, विदेघ राजा ने अपने राज्य की सीमा पर बहनेवाली ‘सदानीरा’ नदी में स्वयं को झोंक दिया, जहाँ अग्नि आखिर शान्त हुआ। फिर भी सदानीरा का पानी अविरत बहता ही रहा। इसी कारण, वह नदी सदानीरा नाम से सुविख्यात हुई [श. ब्रा. १.४.१.१०-१७] । सायणाचार्य के अनुसार, आज भी उपर्युक्त नदी कोसल एवं विदेह देश के सीमा पर ही बहती है ।

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