पृषध्र n. एक राजा, के वैवस्वत मनु का नवॉं पुत्र था । इसकी माता का नाम संज्ञा था
[म.आ.७०.१४] ;
[ह. वं.१.१०.२] । भागवत के अनुसार, इसकी माता श्रद्धा थी
[भा.९.१.१२] । च्यवन ऋषि का यह शिष्य था । महाभारत के अनुसार यह प्रातःसायंकालीन कीर्तन करने योग्य राजाओं में से एक है, क्योंकि इसको स्मरण करने से धर्म की प्राप्ति होती है
[म.अनु.१६५.५८-६०] इसने कुरुक्षेत्र में तपस्या करके स्वर्ग प्राप्त किया था
[म.आश्व.२६.११] । पृषध्र के कुल दस भाई थे, जिनके नाम इस प्रकार हैः
पृषध्र (काण्व) n. एक वैदिक सूक्तदृष्टा
[ऋ.८.५९] । ऋग्वेद के वालखिल्य सूक्त में मी इसका निर्देश प्राप्त है । वहॉं मेध्य एवं मातरिश्वन् के साथ इसका उल्लेख आया है
[ऋ.८.५२.२] ।
पृषध्र (मेध्य मातरिश्वन्) n. एक वैदिक राजा, जो प्रस्कण्व का प्रतिपालक था
[सां.श्रौ.१६.११.२५-२७] ।
पृषध्र II. n. एक ब्राह्मणपुत्र । गुरुगृह में शिक्षा प्राप्त करते हुए, एक दिन इसने एक सिंह को देखा कि वह गाय को मुँह में दबाये आश्रम से लिये जा रहा है । गाय की रक्षा के हेतु इसने अपना खड्ग शेर को मारा, पर सायंकाल के समय अंधेरा हो जाने के कारण, वह खड्ग गाय को लगा और वह तत्काल मर गयी । दूसरे दिन गुरु को जैसे ही यह समाचार ज्ञात हुआ उसने पृषध्र को उत्पाति तथा उद्दण्ड समझकर तत्काल शाप दिया, ‘तू शूद्र हो जा’। इस शाप के कारण, यह शूद्र होकर वन भटकता हुआ अन्त में दावानल से घिरकर मृत्यु को प्राप्त हुआ
[भा.९.२.२-१४] ;
[ह.वं.१.११] ;
[वायु.८६.२४.२] ;
[ब्रह्मांड.२.६१.१] ;
[ब्रह्म. ७.४३ लिंग.१.६६.५२] ;
[मत्स्य.१२.२५] ;
[अग्नि.२७२.१८] ;
[विष्णु. ४.१.१३] ;
[गरुड. १.१३८.५] ;
[पद्म. सृ.२] ।
पृषध्र III. n. द्रुपद का एक पुत्र, जो भारतीय युद्ध में अश्वत्थामा द्वारा मारा गया था
[म.द्रो.१३१.१२९] ।