नंदिन् n. -भगवान शिव का दिव्य पार्षद एवं वाहन । यह शालंकायनपुत्र शिलाद ऋषि का पुत्र था । इसे शैलादि पैतृक नाम प्राप्त है । निपुत्रिक होने के कारण, इसके पिता शिलाद ने पुत्रप्राप्ति के लिये तपस्या की । उस तपस्या से प्रसन्न हो कर शंकर ने उसे पुत्रप्राप्ति का वर दिया । उस वर के अनुसार, यज्ञ के लिये जमीन जोतते समय, शिलाद का तीन ऑखोंवाला, चार हाथोंवाला, एवं जटामुकटधारी शंकररुप बालक प्राप्त हुआ । यही नंदिन् है । शिलाद इसे घर ले आया । तत्काल इसका रुप बदल कर, यह अन्य मनुष्यों के समान हुआ । नंदी आठ दस वर्षो का होने पर, मित्रावरुणों द्वारा इसे पता चला, ‘यह अल्पायु है ’। तब अपमृत्यु से बचने के लिये, इसने शंकर की आराधना की एवं अमरत्व प्राप्त किया । इसके तप से प्रसन्न हो कर शंकर ने इसे पुत्र माना, तथा अपने पार्षद गणो में स्थान दिया । नंदिन् ने मरुतों की कन्या सुयशा से विवाह किया था
[शिव.पा.७] । दक्षयज्ञ विध्वंस के प्रसंग में, इसने भग नामक ऋत्वज को बद्ध किया था
[भा४.५.१७] । दक्ष को भी तत्त्वविमुख होने का शाप दिया था
[वा.रा.उ.५०] । अपने पितामह शालंकायन से इसने स्कंद.ुराण का ‘अरुणाचलमाहात्म्य’ सुना, तथा वह मार्कडेय ऋषि को बताया
[स्कंद.१.३.२.१६] । राम के अश्वमेध प्रसंग में इसका हनुमान से युद्ध हुआ था
[पद्म.पा.४३] । नंदिन् ऋषिपुत्र था, एवं स्वयं भी एक ऋषि ही था । फिर भी जनमानस में, शिव का वाहन नंदी ‘बैल’ माना जाता है । इस जनरीति का प्रारंभ कैसे हुआ, यह कहना मुष्किल है । शिव के पार्पद, नृत्यके समय, अश्व, बैल आदि प्राणियों के वेष परिधान करते थे । उसी कारण, उस प्राणियों से उनका साधर्म्य प्रस्थापित किया गया होगा ।
नंदिन् II. n. इन्द्रग्राम में रहनेवाला एक ब्राह्मण । महाकाल नामक किरात के भक्तियोग से इसे शिवदर्शन का लाभ हुआ, एवं इसका उद्धार हुआ । पश्चात् यह शिवगणों में से एक बन गया
[पद्म. उ.१४४] । कई ग्रंथों में इसे वैश्य कहा गया है
[स्कंद.१.१.५] ।
नंदिन् III. n. कश्यप को मुनी नामक स्त्री से उत्पन्नपुत्र ।