-
पु. १ वर्तुळाची परिघाचा भागं , अंश , तुकडा ; ([{ यांपैकी कोणतेंहि चिन्ह ; कुंडली . २ वर्तुळाची ज्या . ३ श्रीकृष्णाच्या मामाचें नांव ; मथुरेचा एक राजा . ( सं .)
-
कंस n. (सो. यदु. कुकुर.) उग्रसेन का पुत्र । उग्रसेन की पत्नी को यह द्रुमिल नामक दानव से हुआ [ह. वं. २.२८] । यह बडा शूर, मल्लविद्याविशारद तथा सर्व शास्त्र पारंगत था । इसे राज्य मिलेगा इस शर्तपर जरासंध ने अपनी कन्या इसे दी थी । इसलिये सब मंत्रिमंडल ने इसे राज्यभिषेक किया । वसुदेव इसका प्रधान था । परंतु आगे चलकर इसने पिता को कारागृह में डाल दिया । परंतु आगे चलकर इसने पिता को कारागृह में डाल दिया । यह वसुदेव का भी कुछ न मानता था [म. स. १३. २९-३१] । पिता को कारावास देकर इसने राज्य स्वयं ले लिया [भा.१०.१. ६९] । कंस तथा वसुदेव ये दोनों यद्यपि यदुवंशांतर्गत है तथापि वंशावली से उनका संबंध काफी दूर का है । बाद में कंस के चाचा उर्फ देवक की कन्या देवकी का विवाह वसुदेव से निश्चित हुआ । इस विवाह के बाद देवकी को वसुदेव के पास पहुँचाते समय लगाम हाथ में लेकर रथ हॉंकने का कार्य कंस ने खुद स्वीकार किया । बडे ठाठ से वारात जा रही थी कि आकाशवाणी हुई, “जिसका रथ तुम हॉंक रहे हो, उसीका आठवां गर्भ तुम्हारा वध करेगा" । यह सुनते ही उसने सोचा कि अगर बहन ही न रही तो उसका आठवॉं गर्भ कहॉं से आवेगा । उसकी हत्या का निश्चय कर देवकी के केश पकड कर उसे मारने के लिये यह सज्ज हुआ । तब इसके सब पुत्र तुम्हें सौंप दूँगा यह आश्वासन देकर बडी कठिनाई से वसुदेव ने इससे देवकी की रक्षा की । इस आश्वासन के अनुसार वसुदेव ने प्रथम पुत्र इसे दिया, परंतु आठवें से भय है, प्रथम से नहीं यह सोच कर इसने उस पुत्र को वापस ले जाने के लिये वसुदेव से कहा । परंतु नारद ने यादवों के बारें में इसका मत कलुषित किया । इससे इसने वसुदेव देवकी के पैरों में वेडियॉं डालकर बंदिवास में डाला तथा प्रत्येक पुत्र का वध करने का क्रम प्रारंभ किया । जरासंध के समान प्रलंब, बक आदि अनेक लोग इसकी सहायता करते थे । यादवों में से प्रमुख लोग इसके द्वारा दिये जानेवाले कष्टों के कारण कुरु, पांचाल, केकय, शाल्व, विदर्भ, निषध, विदेह, कोसल आदि देशों में चले गये । कुछ कंस का प्रेम संपादित करके उसी के पास रहे [भा.१०.२.३-४] । चाणूरादिक जो लोग इसने अपनाये थे वे युद्ध के द्वारा ही अपनाये थे । यह पूर्वजन्म में कालनेमि असुर था [म.आ.६१. ५५९] ;[भा.१०.१.६९] । विष्णु के साथ युद्ध करते करते यह मृत हुआ । परंतु शुक्र ने संजीवनीविद्या द्वारा इसे जीवित क्रिया । तब इसने विष्णु को जीतने के लिये मंदार पर्वत पर तपस्या प्रारंभ की । दूर्वाकुरों का रस पीकर सौ वर्षो तक दिव्य तप करने के बाद ब्रह्मदेव प्रसन्न हुआ । तब इसने वरदान मांगा कि, मुझे देवों के हाथों मृत्यु प्राप्त न हो । ब्रह्मदेव ने कहा कि, यह अगले जन्म में संभव होगा । तदनंतर इसने उग्रसेन की पत्नी के उदर में जन्म लिया । आगे चलकर जब जरासंध विजयप्राप्ति के हेतु बाहर निकला तब यमुना के किनारे उसका पडाव था । तब कुवलयापीड नामक हाथी संकल तोड कर छावनी में से भाग कर, जहॉं मल्लयुद्ध प्रारंभ था वहॉं आया । तब सब मल्ल भयभीत होकर भाग गये । परंतु कंस ने इसकी सूँड पकड कर उसे जमीनपर पटक दिया, पुनः उठाकर हवामें गोल घुमाया तथा सौ योजन दूर जरासंध की छावनी पर फेंक दिया । यह अद्भुत सामर्थ्य देखकर जरासंध ने इसे अपनी अस्ति तथा प्राप्ति नामक दो कन्यायें दीं । माहिष्मती के राजा के चाणूर, मुष्टिक, कूट, शल, तोशलक नामक पुत्र कंस, मल्लयुद्ध के द्वारा अपने नियंत्रण में लाया [गर्ग संहिता १.६.७] ः
-
कंस n. यह राज्यक्रांति का इतिहास है । वसुदेव उग्रसेन का सुप्रसिद्ध मंत्री था । अपने को वह कुछ अपाय करेगा एवं उग्रसेन को गद्दी पर बैठायेगा इस भय से कंस ने उसे कारागृह में डाला, तथा उसके पुत्रों के वध का क्रम प्रारंभ कर दिया [वायु. ९६.१७३,१७९, २२८] । आठवीं बार योगमाया से उसे मालूम हुआ कि उसका शत्रु सुरक्षा से बढ रहा है । तब पश्चात्ताप हो कर इसने वसुदेव देवकी को बंधमुक्त किया । परंतु मंत्रियों से सलाह करके शत्रु को ढूँढकर उसका नाश करने का प्रयत्न उसने जोर से चालू किया । वसुदेव की शेष स्त्रियॉं गोकुल में थीं, अतएव गोकुल की ओर इसकी वक्रदृष्टि घूमी, तथा उन्हीं दिनों जन्मे पुत्रों पर उसने विशेष दृष्टि रखना प्रारंभ किया । पूतना के द्वारा गोकुल पर अरिष्ट आना प्रारंभ हो गया । परंतु इन सब संकटों से कृष्ण की रक्षा हो गई । अंत में कुश्तियों का मैदान बांध कर उसमें अपनें मल्लों के द्वारा कृष्ण को मारने का षड्यंत्र इसने रचा । कृष्ण तथा बलराम ख्यातनाम पहलवान थे । उसी के अनुसार धनुर्याग कर के मल्लयुद्धों का बडा मैदान इसने रखा । दिग्विजय के समय परशुराम का जो धनुष्य कंस ने प्राप्त किया था, वह भी रखा तथा जो कोई उसे चढायेगा उसके लिये इनाम भी घोषित किया गया । उस धनुष्य को कृष्ण ने आसानी से चढा दिया [गर्गसंहिता १.६] तथा अनेक बार घुमा कर तोड भी दिया [ह. वं. २.२७.५७] ।
-
The name of the uncle and enemy of कृष्ण.
Site Search
Input language: