अलर्क n. (सो. क्षत्र.) काशी के दिवोदास राजा का प्रपौत्र । इसके पिता का नाम वत्स, प्रतर्दन तथा ऋतध्वज प्राप्त है । दिवोदास प्रेम से प्रतर्दन को ही ‘वत्स-वत्स’ कहता था । प्रतर्दन सत्यनिष्ठ होने के कारण उसे ऋतध्वज ऐसा दूसरा नाम भी था
[ह. वं. १.२९, विषू.४.९ भा.९.१७] । गरुड पुराण के मत मे, दिवोदास का पुत्र प्रतर्दन का पुत्र वत्स तथा उसका पुत्र अलर्क है । इसने काशी में ६६ हजार वर्षों तक राज्य किया
[ह. वं. १.२९] ;
[भा. ९.१७] ;
[ब्रह्म.११] । यह ब्राह्मणों का बडा सत्कर्ता था तथा अत्यंत सत्यप्रतिज्ञ था । इसने एक बार अंध ब्राह्मण को वर मांगने के लिये कहा, तब उसने वर मांगा कि, तुम अपनी ऑखे निकाल कर उसे दे दो
[वा.रा.अयो.१२.४३] । लोपामुद्रा की कृपा से यह सदैव तरुण रहा, तथा इसका स्वरुप कभी भीं नहीं बिगडा । उसी की कृपा से इसे दीर्घायुष्य प्राप्त हुआ । निकुंभ के शाप के निर्मानुष बनी हुई वाराणशी, क्षेमक को मार कर इसने पुनः बसाई
[वायु. ९२.६८] ;
[ब्रह्मांड. ३.६७] । इसने वाराणशी नगरी की पुनः स्थापना की
[ह. वं. १.२९,३२] । इसने प्रथम धनुर्बल से सब पृथ्वी जीती, तथा बाद में इसका अंन्तःकरण सूक्ष्म ब्रह्म की ओर झुका । नाक, कान, मन, जिव्हा इ. इन्द्रिय काबू में रखने के लिये, इसने नाक कानादिकों से संभाषण किया
[म. आश्व. ३०.] । इसे संतति नामक एक पुत्र था
[भा.९.१४] ;
[विष्णु.४.९] ;
[वायु.९२.६६] ।
अलर्क II. n. शत्रुजित्पुत्र ऋतुध्वज से मदालसा को उत्पन्न चौथा पुत्र । इसे मदालसा तथा दत्तात्रेय ने निवृत्तिमागे का उपदेश कर ज्ञानी बनाया
[मार्क. २३-४०] । इसके ज्येष्ठ बंधु सुबाहु ने काशिराज की सहायता से इस पर आक्रमण किया । अत्यंत संकट में रहने पर, माता की इच्छानुसार त्यागी बन कर इसने अपना राज्य सुबाहु को दिया
[मार्क. ३४] ।