अपाला n. अत्रि की कन्या । यह ब्रह्मज्ञानी थी । इसके शरीर पर कोढ होने के कारण, पति ने इसका त्याग कर दिया था । पितृगृह में रह कर, इन्द्र को प्रसन्न करने के लिये, इसने तपस्या प्रारंभ की । इन्द्र को सोम अत्यंत प्रिय है, ऐसा ज्ञात होते ही, यह सोम लाने के लिये नदी पर गई । वहॉं प्राप्त सोम इसने मार्ग में ही चबा कर देखा । चबाते समय जो आवाज हुआ उसे सुन कर इन्द्र वहॉं आया । आपाला ने सोम इन्द्र को दिया । इन्द्र ने प्रसन्न हो कर इसकी इच्छायें पूर्ण की । इसकें पिता का गंजापन दूर किया, इसकी खेती उर्वरा बनाई (इसके गुह्यभाग पर केश उगाये), तथा इसका कुष्टारोग आख पर घिस कर नष्ट कर दिया । यह कथा सायणाचार्य ने शाटयायन ब्राह्मण से ली हैं । इसे मूलभूत मान कर ही ऋग्वेद का एक सूक्त बना होगा
[ऋ.८.९१] । इस सूक्त में एकवार अपाला का निर्देश आया हैं ।