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of the sense of a word; the first is Figure, the second is Trope. The वाच्यालंकार or Figures are enumerated at one hundred and fifteen, the शब्दा- लंकार or Tropes, at five. These hundred and fifteen figures, omitted under the proper word अर्था- लंकार, are inserted here:--उपमालंकार, अनन्वय, उपमेयोपमा, प्रतीप, रूपक, परिणाम, उल्लेख, स्सृतिमान्, भ्रांतिमान्, ससंदेह, अपन्हुति, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, तुल्ययोगिता, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टांत, निदर्शना, व्यतिरेक, विनोक्ति, समासोक्ति, परिकर, परिकरांकुर, श्लेष, अप्रस्तुतप्रशंसा, प्रस्तुतांकुर, पर्यायोक्त, व्याजनिंदा, व्याजस्तुति, आक्षेप, विरोधाभास, विभावना, विशेषोक्ति, असंभव, असंगति, विषम, विचित्र, अधिक, अल्प, अन्योन्य, विशेष, व्याघात, कारणमाला, एकावली, माला- दीपक, यशासंख्य, पर्याय, परिवृत्ति, परिसंख्या, विकल्प, समुच्चय, समाधि, प्रत्यनीक, काव्यार्थापत्ति, काव्यलिंग, अर्थांतरन्यास, विकस्वर, प्रौढोक्ति, संभावना, मिथ्याध्य- वसिति, ललित, प्रहर्षण, विषादन, उल्लास, अवज्ञा, अनुज्ञा, लेश, मुद्रा, रत्नावली, तद्गुण, पूर्वरूप, अतद्गुण, उत्कर्ष, मीलित, सामान्य, उत्तर, चित्र, सूक्ष्म, व्याजोक्ति, विवृतोक्ति, युक्ति, लोकोक्ति, छेकोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक, अत्युक्ति, निरुक्ति, प्रतिषेध, विधि, हेतु, रसवत्, प्रेयस्, ऊर्जस्वित्, समाहित, भावोदय, भावसंधि, भावश- बलता. For the definitions and exemplifications of these figures see प्रतापरुद्रग्रंथ & काव्यप्रकाश. Note. The above वाच्यालंकार are, not one hundred and fifteen, but ninety-eight; because the enumera- tion presents, not the divisions and subdivisions, but the main word simply.
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