एकलव्य n. व्याधों का राजा । हिरण्यधनु का पुत्र । द्रुपद से सहायता की अपेक्षा नष्ट होने पर चरितार्थ के लिये द्रोणाचार्य ने भीष्म के नातियों को धनुर्विद्या सिखाने का काम स्वीकार किया । धृतराष्ट्र तथा पंडु के पुत्र उसके पास विद्याध्ययन करने लगे । कुछ दिनों में द्रोणाचार्य के अध्यापन कौशल्य की कीर्ति चारों ओर फैल गई । इससे दूर दूर के देशों के राजपुत्र द्रोणाचार्य के पास विद्याध्ययन के लिये आने लगे । एकलव्य भी विद्यार्जन के लिये द्रोणाचार्य के पास आया । परंतु व्याधपुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे पढाना अमान्य कर दिया । तब किसी भी प्रकार का विषाद मन में न रखते हुए, द्रोणाचार्य पर दृढ विश्वास रखकर, नमस्कार कर के यह चला गया
[म.आ.१२३.११] । द्रोण के द्वारा विद्यादान अमान्य किये जाने परभी अपना निश्चय न छोडते हुए इसने द्रोण की एक छोटी प्रतिमा मिट्टी की बनाई तथा उसे अपना गुरु मान कर, उस प्रतिमा के प्रति दृढ विश्वास रखते हुए, प्रतिमा के सामने अपना विद्याव्यासंग चालू रखा तथा विद्या में प्रवीण हो गया । द्रोणाचार्य ने उत्तम ढंग से अपने शिष्यों को सिखाया था । सब शिष्यों से अधिक द्रोण की प्रीति अर्जुन पर थी । उसने अर्जुन को आश्वासन दिया था कि किसी भी शिष्य को मैं तुमसे अधिक पराक्रमी नहीं बनाऊंगा । कुछ दिनों के बाद द्रोणाचार्य सब शिष्यों के सहित कुत्ता आदि मृगयासामग्री ले कर मृगया के लिये गये । शिकार करते समय कुत्ता उनसे काफी दूर एकलव्य के पास गया तथा बलाढय, कृष्णवर्णीय व्याध को देखकर भौंकने लगा । तब उसे बिल्कुल जख्म न हो किन्तु उसका भौंकना बंद हो जावे, इस हेतु से, बडी कुशलता से, एकलव्य ने उसके मुख में सात बाण मारे । तब वह कुत्ता उसी प्रकार अपने मालिक के पास आया । उस कुत्ते को देखकर द्रोण को आश्चर्य लगा कि इतनी कुशलता से लक्ष्यवेध करनेवाला यह कौन हो सकता हैं । इधर उधर देखते समय द्रोण को एकलव्य दृष्टिगत हुआ । द्रोण को देख कर एकलव्य ने अभिवादन किया तथा कहा कि, मैं आपका शिष्य हूँ । द्रोण को उसकी कुशलती से बडा आनंद तथा कौतुक लगा । यह अर्जुन की अपेक्षा धनुर्विद्या में श्रेष्ठ जानकर अर्जुन को दिया गया अपना वचनभंग हो जाने का डर लगा । परंतु बडी युक्ति से गुरु दक्षिणा के तौर पर इसने उसके दाहिने हात का अंगूठा मांग लिया । एकवचनी एकलव्य ने वह दे दिया
[म.आ.१२३.३७] । परंतु इससे इसकी पहले की चपलता नष्ट हो गई । एकलव्य भारतीय युद्ध में कौरवों के पक्षमें था । दाहिना हाथ पूर्ण रुपसे निरुपयोगी होते हुए भी इसने अत्यंत पराक्रम दर्शाया । यह श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया
[म. द्रो. १५५.२९] । इसे केतुमान्, नामक एक पुत्र था । वह भीम के द्वारा मारा गया
[म. भी.५०.७०] ।