सहजोबाईजी - वृद्ध अवस्था

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


सहजो धौले आइया, झड़ने लागे दाँत ।
तन गुंझल पड़ने लगी, सूखन लागी आँत ॥
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डबडबाय आँखन में पानी । बूढ़े तन की यही निसानी ॥
नैनन में जल भरि भरि आवै । दाँत हिलैं दारुन दुख पावै ॥
गोड़े थके दरद बाई का । कफ खाँसी हिये दुख वाही का ॥
खों खों करै नींद नहिं आवै । आप जगै और लोग जगावै ॥
बेबस इन्द्री सिथल भई हैं । अब क्या जीतें सहज गई हैं ।
पूत बहू लख नाक चढ़ावैं । बहुत पुकारै निकट न आवैं ॥
निहुरि चलै लकड़ी लै हाथा । स्वजन कुटँब नहिं दुख के साथा ॥
असी बरस लग बीते साठी । सहजो कहै बहक बुधि नाठी ॥
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असी बरस ऊपर लगी, बिरध अवस्था होय ।
आगे की थिरता नहीं, पिछलि गइ सब खोय ॥
तीन अवस्था बीत कर, चौथी आई मन्द ।
बृद्ध अवस्था सिर चढ़ी, तहू न चेता अन्ध ॥
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सेत रोम सब हो गये, सूख गई सब देह ।
सहजो वह मुख ना रहा, उड़ने लागी खेह ॥
सहजो इन्द्री सब थकी, तन पौरुष भये छीन ।
आसा तृस्ना ना घटी, सहज बचन भये दीन ॥
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लागी बिरध अवस्था चौथी । सहजो आगे मौत हि मौती ॥
हाथ पैर सिर काँपन लागे । नैन भये बिनु जोति अभागे ॥
सर्वन तें कछु सुनियत नाहीं । दाँत डाढ़ नहिं मुख के माहीं ॥
कंठ रुके कफ बाई घेरे । हाड़ हाड़ सब दुख में पेरे ॥
बात कहै घर बाहर हाँसा । कुटँब दियौ मिल पौरी बासा ॥
मन चालै सब रस कूँ तरसै । नर नारी कोइ हितू न दरसै ॥
आप आप कूँ इत उत डोलै । बिन पौरुष कोइ मुखहुँ न बोलै ॥
जिन कारन पचिया दिन राती । बात करें नहिं कुटॅब सँगाती ॥
सुत पोते दुर्गंध घिनावैं । टहल करें तब नाक चढ़ावैं ॥
तिन के मोह तजे जगदीसा । अब मन में कलपै धुनि सीसा ॥
चरनदास गुरु कही बिसेषी । हरि बिन यों जग जाता देखी ॥
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चार अवस्था खो दई, लियो न हरि को नाम ।
तन छूटे जम कूटि है, पापी जम के ग्राम ॥
आय जगत में क्या किया, तन पाला कै पेट ।
सहजो दिन धंधे गया, रैन गई सुख लेट ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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