सहजोबाईजी - बचपन

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


गूँगा घी कहना जब सीखा । सेद्रू नाम मदारी भीखा ॥
माय बाप ले नाम पुकारें । जब किलकै तब तन मन वारें ॥
मुख चूमैं और कंठ लगावैं । देवी देवा बहुत मनावैं ॥
रोग होय तो बहु दुख पावैं । ले ले जहाँ तहाँ पग धावैं ॥
कबहूँ झरि पिंजर है जावै । कबहूँ खाँसी बहुत सतावै ॥
चलै पेट कबहूँ बहु रोवै । खीजै बहुत नेक नहिं सोवै ॥
ज्वर कबहूँ दूखें दोउ नैना । पुनः पुनः दुख लहै न चैना ॥
निकसै दाँत दाढ़ दुख भैया । जब सूँ जन्म सदा दुख पैया ॥
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दुक्ख सुक्ख बढ़ने लगा, पाँच बरस भइ देह ।
जब पढ़ने बैठाइया, अपनी बिद्या लेह ॥
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बालक का चित खेल मँझारे । ज्यौं ज्यौं पाधा छड़ियन मारै ॥
बैठि रहै तौ पकड़ बुलावै । बाँधि बाँधि दुख देत पढ़ावै ॥
मन ही मन सोचै दुख भारी । दुर्जन भये बाप महतारी ॥
दुख दे दे कर बहुत पढ़ाया । खोट कपट में घना सँधाया॥
ऐसे भया बरस द्वादस का । रहा नहीं उनहूँ के बस का ॥
मन में आवै सो पुनि करई । मात पिता सूँ नेक न डरई ॥
खेलै खेल बहुत परकारा । सबही बिधि लड़कापन हारा ॥
बालपना हस खेल गँवाया । गुरु की टहल सरन नहिं आया ॥
पाप पुन्न कूँ ना पहिचाना । सहजो कर्ता राम न जाना ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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