सहजोबाईजी - जगत् झूठा है

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


आतम में जागत नहीं, सुपने सोवत लोग ।
सहजो सुपने होत हैं, रोग भोग और जोग ॥
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कोटि बरस इक छिन लगै, ज्ञान दृष्टि जो होय ।
बिसरि जगत औरै बनै, सहजो सुपने सोय ॥

सहजो सुपने एक पल, बीतै बरस पचास ।
आँख खुलै जब झूठ है, ऐसे ही घर बास ॥

ऐसे ही सब स्वप्न है, स्वर्ग मिर्तु पाताल ।
तीन लोक छल रूप है, सहजो इन्दरजाल ॥
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मृग तृस्ना जल साँच है, जब लग निकट न जाय ।
सहजो तब लग जग बन्यौ, सतगुरु दृष्टि न पाय ॥
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जगत तरैयाँ भोर की, सहजो ठहरत नाहिं ।
जैसे मोती ओस की, पानी अँजुली माहिं ॥
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धूवाँ कौ सो गढ़ बन्यो, मन में राज सँजोय ।
झाँई माई सहजिया, कबहूँ साँच न होय ॥
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ज्ञानी को जग झूठ है, अज्ञानी कूँ साँच ।
कोटि लाल कागद लिखे, सहजो बैठा बाँच ॥
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अज्ञानी जानत नहीं, लिप्त भया करि भोग ।
ज्ञानी तौ दृष्टा भये, सहजो खुसी न सोग ॥
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ऐसे ही जग झूठ है, आतम कूँ नित जान ।
सहजो काल न खा सकै, ऐसो रूप पिछान ॥
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जैसे बालक जल बिषे, देखि देखि डरपाय ।
समझ भई जब भर्म था, सहजो रहै खिसाय ॥
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हरि हर जप लेनी औसर बीतो जाय ।
जो दिन गये सो फिर नहिं आवैं, कर बिचार मन लाय ॥
या जग बाजी साच न जानो, ता में मत भरमाय ।
कोइ किसी का है नहिं बौरे, नाहक लियौ लगाय ॥
अंत समय कोइ काम न आवै, जब जम देहि बोलाय ।
चरनदास कहैं सहजो बाई, सत संगत सरनाय ॥
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सहजो भज हरि नाम कूँ, तजो जगत सूँ नेह ।
अपना तो कोइ है नहीं, अपनी सगी न देह ॥
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मन माहीं बैराग है, ब्रह्म माहिं गलतान ।
सहजो जगत अनित्य है, आतम कूँ नित जान ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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