सहजोबाईजी - जीवन

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


विवाह की रस्म

चलना है रहना नही, चलना बिस्वाबीस ।
सहिजो तनिक सुहाग पर, कहा गुंधावे सीस ॥
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सब शिष भये महाराज के, मन क्रम लइ शरणाय ।
आज्ञाकारी ही रहैं, ये तिन्ह करें सहाय ॥
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सहजोबाई का भक्ति भाव

हरि प्रसाद की पुत्री जानों । चरणदास की शिष्य पिछानों ॥
तिहुँ कुल दीपक सहजो बाई । सासर पीहर भक्ति बढ़ाई ॥
सत्य शील में साँवत साँची । जग कुल व्याधि सबन सों बाँची ॥
दया क्षमा की मूरति मानों । ज्ञान ध्यान भरपूर सु जानों ॥
साधुन को ऐसी सुखदाई । मानों भक्ति रूप धरि आई ॥
प्रेम लगन माँहीं अधिकाई । कर्मा और ज्यों मीराँ बाई ॥
योग युक्ति बैराग सुहाये । ये अँग जनु भूषण छबि छाये ॥
अनुभव हिये प्रकाश जु ऐसी । पूरण शशियर चाँदन जैसी ॥
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जग की व्याधि मिटाय के, लावे हरि गुरु रंग ।
बानी जाकी सोहनी, सुनत जु उठे उमंग ॥
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गुरु भक्ती एकी पहिचानों । दूजी ता सम और न मानों ॥
गुरु को सर्वस आपा अर्पा । गुरु बिन दूजा भाव न थर्पा ॥
गुरु ही ता के सर्वस जानों । जीवन मूरी गुरु पहिचानों ॥
राम से गुरु को अधिकी माने । पूरण ब्रह्म सु गुरु ही ठाने ।
गुरु का जाप जपे दिन रैना । गुरु का ध्यान धरे हिये चैना ॥
औरन को गुरु मत समझावे । गुरु बिन और न वाहि सुहावे ॥
जैसे सूरा रण में जूझे । ऐसो गुरु मत में आ रुझे ॥
गुरु की भक्ति करन का लाहा । जीवन जग में नेम निवाहा ॥
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॥ दोहा ॥
चरणदास की शिष्य दृढ़, सहजो बाई जान ।
ताकी जो गुरु भक्ति पर, जोगजीत कुर्बान ॥
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सहजो गुरु दीपक दियौ, रोम रोम उजियार ।
तीन लोक दृष्टा भये, मिटयौ भरम अँधियार ॥
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सहजो गुरु दीपक दियौ, नैना भये अनन्त ।
आदि अन्त मध एक ही, सूझि पड़े भगवन्त ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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