सहजोबाईजी - युवावस्था

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


तरुनापा फिर आइया, पाँच भूत लै संग ।
जोबन मद मातो रहै, पियै बिषय को रंग ॥
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तरुनापा भया सकल सरीरा । अंधा भया बिसरि हरि हीरा ॥
बिषय बासना के मद मातो । अहं आपदा के रंग रातो ॥
मूँछ मरोड़ अकड़ता डोलै । काहू तें मुख मीठ न बोलै ॥
कहै बराबर मेरे नाहीं । बुद्धिवान कोइ या जग माहीं ॥
मैं बलवन्त सबन पर भारी । द्रब्य कमाऊँ नरन अगारी ॥
महा दुखी सुख मान लियो है । मोह अमल अज्ञान पियो है ॥
भया कुटम्बी जब सुख कैसा । सहजो बन्ध पड़ै कोइ जैसा ॥
सुत पुत्री उपजै मरि जावै । सोच सोच तन मन दुख पावै ॥
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द्रब्यहीन भटकत फिरै, ज्यों सराय को स्वान ।
झिड़कि दियो जेहि घर गया, सहजो रह्यौ न मान ॥
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द्रब्यहीन सब को मुख जोहै । जाति बरन देखै नहिं को है ॥
निहुरि निहुरि ज्यों बन्दर नाचै । राम तजो इन बातन राचै ॥
बेटी ब्याह जोग घर माहीं । और भूखे सब कित सूँ खाहीं ॥
कहै हवेली एक बनाऊँ । अपने कुल में इज्जत पाऊँ ॥
कलपै बहुत सीस धुनि माथा । सहजो दुखी कुटॅब के साथा ॥
आवै ना सतसंगति माहीं । कुटँब जाल छुटकारा नाहीं ॥
हरि की भक्ति नहीं लौ लाई । दारा सुत धन की गुमराई ॥
दुख धन्धा करि जन्म गँवाया । सहज सहज बूढ़ापन आया ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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