सहजोबाईजी - जीव की अवस्था

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


जन्म मरन अब कहत हूँ, कहूँ अवस्था चार ।
चौरासी जमदंड कूँ, भिन्न भिन्न बिस्तार ॥
चरनदास अज्ञा दई, सहजो परगट गाय ।
ता सूँ पढ़ि सुनि जीव की, सकल बन्ध कटि जाय ॥
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पापी जीव गर्भ जब आवै । भवन अँधेरे बहु दुख पावै ॥
तल मूड़ी ऊपर को पाऊँ । मुख लिंगी और बिष्टा ठाऊँ ॥
जठर अगिन इक रस जहँ लागी । अधिक तपै जहँ पतित अभागी ॥
खट्टा मीठा माता खावै । लागि छुरी सी बहु दुख पावै ॥
आप दुखी माता दुख पाया । दसें महीने जग में आया ॥
जग जंजाल देखकर रोया । नर नारी मिलि सभी बिगोया ॥
माया मोह पवन लगि भूला । सहजो गोद पालने झूला ॥
नाते सभी लगे उठि झूठे । पड़ा बन्ध में कैसे छूटे ॥
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सब नाते उठि उठि लगे, रोम रोम लिया बन्ध ।
सहजो यह भी रलि मिला, फिर फिर भूला अन्ध ॥
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कोई कहै मैं इसकी माई । कोई कहै लाला की दाई ॥
कोई कहै यह सुन्दर हीरा । गोद खेलाऊँ अपना बीरा ॥
कोई कहै मैं या का बापू । बालक पाया पुन्न प्रतापू ॥
कोई कहै मैं या की बूवा । चाचा कहै भतीजा हूवा ॥
कोई कहै यह मेरा भाई। कोई कहै मैं दादी आई ॥
कोई कहै मैं मा की बहिनी । कोई कहै मैं या की नानी ॥
कोई कहै मैं इसका मामा । लाया खाँड़ खडूले जामा ॥
कोई कहै मैं या का नाना । मामी ने भांजा करि जाना ॥
कोई कहै यह पोता बाल । कोई कहै यह मेरा लाल ॥
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सब नाते लिये मान कर, घेरा घेरी घेर ।
झूठे साँचे से लगें, सुपने कंचन मेर ॥
पित्र देवता गोतिया, गरह नछत्तर सौन ।
सहजो बंधन बँधि गए, ताहि छुड़ावै कौन ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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